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५२ अमर भारती बंधता नहीं और आकाश, पाताल तथा समुद्र बाँधने की कोरी बात करता है।"
मनुष्य समूचे संसार के सुधार की विशाल संयोजना बनाता-बिगाड़ता है । परन्तु पहले अपने जीवन को तो सुधार ले । विश्व, राष्ट्र और समाज के सुधार से पहले व्यक्ति को अपना सुधार करना होगा, तभी वह अपनी समस्याओं का मौलिक समाधान कर सकेगा। आगम, वेद और त्रिपिटक की लम्बी और गहरी चर्चा करने वालों को सोचना होगा, कि हम मानव जीवन की उलझी समस्याओं के सुलझाने में कितना योगदान कर रहे हैं।
बुलियन हॉल, जयपुर
७-८-५५
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