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हरिजन दिवस
भारत के विचार प्रवण मस्तिष्कों ने चिरकाल से मानव जीवन का विश्लेषण किया है, विवेचन किया है और पता पाने का चिर प्रयास किया है-कि वास्तव में मानव अपने आप में क्या वस्तू है ? भारतीय मनीषियों की परिभाषा के अनुकूल मानव में मर्त्य और अमृत का संमिश्रण है, संयोग है। मनुष्य का शरीर मर्त्य और आत्मा अमृत भाव है। उनका मयं भाग उसे पार्थिव विश्व के साथ जकड़े हए हैं। मनुष्य के भीतर एक देवी तत्व भी है, जिसे अमृतत्व कहा है । मनुष्य का देह भाग पञ्चभूतात्मक है और अमृत भाग सदा शाश्वत है। मानव अपने आप में एक ओर देह है, तो दूसरी ओर शुद्ध आत्म तत्व भी।
भारत के सभी धर्म, सभी दर्शन और सभी संस्कृतियाँ मानव के मानवत्व का मूल्यांकन जाति कुल के आधार पर नहीं, गुण और कर्म के आधार पर ही करते हैं। कम से कम भारत की श्रमण परम्परा तो जीवन की पवित्रता के आधार पर ही मनुष्यत्व का मूल्यांकन करती है। जातो और कुल को माध्यम बनाकर नहीं।
मेरे विचार में मनुष्य का मूल्य उसके पञ्चभौतिक देह से नहीं, बल्कि वह अपने जीवन में स्वयं क्या वन रहा है-इसे देखकर ही मनुष्य के जीवन का मूल्य सही रूप में आँकना होगा । मेरी दृष्टि में तो महाजन और
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