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अमर भारती
पन्थों में नहीं, पवित्र भावना में है । जो पवित्रता के पन्थ पर चलता है, वह अवश्य ही कल्याण का भागी है ।
रेगिस्तान में कोई हरा भरा और छायादार वृक्ष हो तो दूर-दूर के यात्री भी उसकी छाया के आकर्षण से खिंचे चले आते हैं । उसकी शीतल छाया में थका-मांदा और आतप-तापित मनुष्य सुख और शांति का अनुभव करता है । आने-जाने वाले यात्रियों के आकर्षण को वह घटादार वृक्ष एक सुरम्य केन्द्र बन जाता है । उस वृक्ष की टहनी को यदि कोई तोड़ डालता है, तो द्रष्टा को कितनी पीड़ा होती । किन्तु नीरस हो जाने पर या सूख जाने पर टूट-टूट कर गिरना ही उसके भाग्य में बदा होता है । नष्ट-भ्रष्ट जाने के अतिरिक्त उसकी कोई अन्य स्थिति शेष नहीं रहती ।
परिवार, समाज और संघ भी अपने आप में एक हरे भरे, घटादार और छायादार वृक्ष हैं । स्नेह और सद्भाव के शीतल एवं मधुर जल से इनका सिंचन होना चाहिए, तभी ये हरे-भरे रह सकते हैं, घटादार और छायादार रह सकते हैं । संघ संघटित हैं, हरे-भरे हैं, जिनकी जड़ें मजबूत हैं, उनकी शीतल छाया में कभी सन्त भी आ सकते हैं, कभी सहधर्मी भाई भी आ सकते हैं और कभी अन्य नागरिक भी वहाँ आश्रय पाकर सुख, शान्ति का अनुभव कर सकते हैं । और यदि वे दुर्भाग्य से स्नेह शून्य हो गए, सूख गए, तो फिर टूट-टूटकर गिरना ही उनके भाग्य में लिखा होगा | विनाश और ह्रास की कहानी तो उनके जीवन में शेष रहती है । इस स्थिति में वहाँ निराशा का घोर अन्धकार ही मिलेगा, आशा का स्वर्णिम प्रकाश नहीं । अभी मैं आपसे कह रहा था कि मानव जीवन में आशा का बड़ा महत्व है | आशा जीवन है और निराशा मृत्यु । दूसरों को जो आशा का प्रकाश देते हैं, उन्हें ही आशा का दिव्य प्रकाश मिल सकता है ।
आपके संघ में स्नेह और सद्भाव की वह शक्ति होनी चाहिए कि आप अपने सहधर्मी भाइयों को भी सेवा कर सकें। आपके इस जयपुर क्षेत्र में पंजाब के बहुत से सहधर्मी श्रावक आये हैं, उनका ध्यान रखना आपका कर्तव्य है । सहधर्मी बन्धु किसी भी देश का हो, किसी भी जाति का हो, वह आपका धर्म बन्धु है । उसे धर्म साधना में सहयोग देना आपका सर्व प्रथम कर्तव्य है । स्वयं धर्म में स्थिर रहना और यह श्रावक का मुख्य कर्तव्य है। संघ के प्रत्येक विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
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दूसरों को स्थिर रखना, व्यक्ति को इस बात का
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