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अनेकान्त दृष्टि
धर्म क्या है ? सत्य की जिज्ञासा, सत्य की साधना, सत्य का सन्धान । सत्य मानव जीवन का परम सार तत्व है। प्रश्न व्याकरण सूत्र में भागवत प्रवचन है-"सच्चं खु भगवं।" सत्य साक्षात् भगवान है। सत्य अनन्त है, अपरिमित है। उसे परिमित कहना, सीमित करना, एक भूल है । सत्य को बाँधने की चेष्टा करना, संघर्ष को जन्म देना है, विवाद को खड़ा करना है । सत्य की उपासना करना धर्म है और सत्य को अपने तक ही वांध रखना अधर्म है । पन्थ और धर्म में आकाश-पाताल जैसा विराट अन्तर है। पन्थ परिमित है, सत्य अनन्त है । "मेरा जो सच्चा" यह पन्थ की दृष्टि है। "सच्चा सो मेरा" यह सत्य की दृष्टि है। पन्थ कभी विष रूप भी हो सकता है, सत्य सदा अमृत ही रहता है ।
___अपने युग के महान् धर्म-वेत्ता, महान् दार्शनिक आचार्य हरिभद्र से एक बार पूछा गया- "इस विराट विश्व में धर्म अनेक हैं, पन्थ नाना है और विचारधाराएँ भी भिन्न-भिन्न हैं - "नको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् ।" प्रत्येक मुनि का विचार अलग है, धारणा पृथक् है और मान्यता भिन्न है । कपिल का योग मार्ग है, व्यास का वेदान्त विचार है, जैमिनि कर्म-काण्ड. वादी है, सांख्य ज्ञानवादी है - सभी के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। कौन सच्चा, कौन झूठा? कौन सत्य के निकट है और कौन सत्य से सुदूर है ? सत्य धर्म का आराधक कौन है, और सत्य धर्म का विराधक कौन है ?
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