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समस्या और समाधान ५१
एक दिन पिता और पुत्र दोनों साथ आए । बाग को देखा । पुत्र प्रसन्न था कि अब उसमें कांटे नहीं रहे । पिता प्रसन्न था कि मेरा बाग जैसा का तसा ही रहा । चतुर माली के सुधार से दोनों प्रसन्न थे । क्योंकि इसमें दोनों के विचारों का सुमेल था । दोनों की समस्याओं का सुन्दर समाधान था । पुत्र क्रान्तिकारी था, पिता रुढ़िवादी था, परन्तु माली था - सुधारवादी । जो अच्छा था, रख लिया, जो बुरा था, निकाल फेंका ।
परिवार, समाज और राष्ट्र सबकी यही स्थिति है । उसके कल्याण और विकास का एक ही मार्ग है कि अतीत का आदर करो और भविष्य का स्वागत । न अकेला क्रान्तिवाद काम का है और न अकेला रुढ़िवाद । सुधारवाद ही समस्याओं का मौलिक समाधान है । जीवन विकास में जो उपयोगी हो, ग्रहण करो, जो उपयोगी नहीं छोड़ दो ।
मैं अभी आपसे सुधार की बात कह रहा था । सुधार कहाँ से प्रारम्भ हो ? क्यक्ति से या समाज से ? मेरा अपना विश्वास यह है कि सुधार पहले व्यक्ति का होना चाहिए । व्यक्ति सुधरा तो समाज भी सुधरा । मूल मधुर है तो फल-पत्ते भी मधुर । व्यक्ति के विकास में ही परिवार, समाज और राष्ट्र का विकास सन्निहित है । उत्तर प्रदेश की एक लोक कथा मुझे याद आ गई है ।
एक जुलाहा था । कपड़े बुनने के सिवाय वह झाड़ा-फूँकी भी कर दिया करता था । मन्त्र-तन्त्र भी पढ़ देता था । वर्षा का समय था । छप्पर गीला रहने से चुता रहता था । एक रोज जुलाहा आने वाले के झाड़ा-फूँकी कर रहा था । और साथ हो यह मन्त्र भी बोल रहा था
"आकाश बाँधू पाताल बांधू । बांधू समुद्र की खाई ।"
जुलहिन कई दिनों से कह रही थी कि छप्पर ठीक बाँध लो, जिससे बच्चे और हम भी सुख से रात काट सकें । पर वह अपनी धुन में मस्त था । जब वह मन्त्र पढ़ने लगा, तो जुलाहिन दोड़ी आई और जुलाहे के सिर में दो धप्प मारे । बोली - "नपुता, आकाश, पाताल और समुद्र बांधने चला है । पहले अपना छप्पर तो बाँध ले । तुमसे अपना यह छोटा-सा छप्पर तो
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