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६८ अमर-भारती आराध्य भगवान का संस्मरण करती है । लोक भाषा में इस दिवस को दीपावली कहते हैं।
दोपाबली के साथ राम, कृष्ण और महावीर का सम्बन्ध तो है हो, लेकिन आज के युग के प्रसिद्ध संन्यासी रामतीर्थ और दयानन्द सरस्वती के महाप्रयाण से भी इसका सम्बन्ध है। अनेक परम्पराएँ इस पर्व में समाहित हो जाती है । अनेक धर्म, अनेक संस्कृतिएँ और अनेक परम्पराओं का संगम-स्थल होने से यह पर्व भारत का एक महान् सांस्कृतिक पर्व है। भारत के पर्व पुंज में दीप-पर्व की पूजा भारत के सांस्कृतिक जन-जीवन की एक मधुर कल्पना है। किसी भी पर्व को लोक प्रियता मिलती है तब, जबकि उस पर्व की मंगल भावना से लोक जीवन भावित होता है । पर्व के पुण्य पलों में जागतिक जीवन और वैयक्तिक जीवन आशा और उल्लास से भर-भर जाता है। मानव मन की आन्तरिक चेतना की अभिव्यक्ति के प्राणवन्त प्रतीक हैं-भारत के ये सांस्कृतिक पर्व । ये पर्व जन-जीवन में संजीवनी पवन की तरल लहरों की तरह आते हैं और गुलाब आशा व धवल उल्लास की रजत रश्मि बिखेर कर लोक जीवन में अखूट और अटूट ताजगी भर जाते हैं । कोटि-कोटि जनों के मन और तन को संस्कृति के एक ही परम पवित्र सूत्र में बाँध रखना यही इन पर्वो का सांस्कृतिक महत्व है।
__अब जरा इस पर्व की आध्यात्मिकता के पहलू पर भी थोड़ा विचार कर लें । मैं आप लोगों से अभी कह गया हूँ कि ये दीपावली पर्व भारत का एक लोकप्रिय और महान पव है । इसका समाज, संस्कृति और आत्माइन तीनों से गहरा सम्बन्ध रहा है । इस पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व के सम्बन्ध में पर्याप्त कह गया हूँ। दीप-पर्व की पृष्ठभूमि में भारत विराट चिन्तकों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण क्या रहा है ? इस विषय में भी विचार करना आवश्यक है।
राम की रावण पर विजय का अर्थ है भौतिक सत्ता पर आध्यात्मिक बल की विजय । लंका विजय का भी आध्यात्मिक संकेत यही है, कि वासना रूपी लंका पर सुसंस्कृत मनोरूप राम ने आधिपत्य कर लिया।
.. कृष्ण ने नरकासुर का वध किया। आसुरी भावना पर देवी भावना की विजय । नरकासुर दैत्य आसुरी शक्ति का प्रतीक है, और कृष्ण आध्यात्मिक बल के प्रतीक । मानव के मनो राज्य में जब आसुरी भावना का
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