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काल पूजा : धर्म नहीं
काल बड़ा है या मानव महान् है ? यह एक प्रश्न है, जो अपना . मौलिक समाधान चाहता है ? भिन्न-भिन्न प्रकार से इसका समाधान किया गया है । एक आचार्य ने तो यहां तक कहा-“मनुष्य न अपने आप में बलवान है और न दुर्बल । समय व काल ही मनुष्य को महान् व क्षुद्र बनाता है।" "समय एव करोति बलाबलम् ।"
आचार्य ने सम्पूर्ण शक्ति काल के हाथों में सौंप कर मनुष्य को पंग बना डाला है। मनुष्य काल के आधीन है। काल अच्छा, तो मनुष्य भी अच्छा । काल बुरा, तो मनुष्य भी बुरा ।
परन्त जैन संस्कृति इस निष्कर्ष से सहमत नहीं है । जैन धर्म के महान् चिन्तकों ने मनुष्य के जीवन की बागडोर काल के हाथ में न थमा कर स्वयं मनुष्य के हाथ में ही सौंपी है । उन्होंने कहा-“मनुष्य, तू अपने आप में लघु और हीन नहीं, महान् और विराट है । तेरा चढ़ाव और ढलाव, तेरा उत्थान और पतन, तेरा विकास और विनाश स्वयं तेरे हाथ में है । तू स्वयं ही अपने जीवन का राजा है, भाग्य विधाता और निर्माता है-अपने आपको चाहे जैसा बना ले ।" तू उठता है, तो तेरे साथ में जगत् भी उठता है। तेरी आत्मा में अनन्त शक्ति का अजस्र स्रोत प्रवाहित है, उसके प्रकटीकरण में काल निमित्त मात्र भले ही रहे, परन्तु उपादान तो स्वयं तेरी आत्मा ही है।
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