Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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पर बीसा और दस्सा के भेद का कारण रक्त-शुद्धि है । यह बात अनेक दस्सा लोग स्वीकार नहीं करते । कुछ महानुभावों ने यह प्रतिपादित किया है, कि महाराज अग्रसेन की जो संतान नाग कन्याओं से हुई, वे बीसा अग्रवाल कहाई । इनके अतिरिक्त अग्रसेन की जो सन्तान अन्य रानियों से हुई, वे दस्सा कहाई । पर इस मत का कोई प्राचीन आधार हमें नहीं मिल सका है। इस दशा में इसकी सत्यता को स्वीकार कर सकना सम्भव नहीं है । अग्रवालों से भिन्न अन्य अनेक जातियों में भी बीसा, दस्सा, पंजा और कहीं कहीं ढाइया तक का मिलना बड़े महत्व की बात है । इस भेद का सम्बन्ध ऊंच नीच के साथ है - इसीलिये यदि इसका आधार सामान्यतया रक्त-शुद्धि को समझा जाय, तो इसमें आश्चर्य नहीं ।
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( ४ ) अग्रवालों में एक अन्य भेद है, जो बड़े महत्व का है अग्रवालों की एक उपजाति 'राजाशाही' या 'राजा की बिरादरी' कहाती है । इसी को कुछ लोग 'राजवंशी' भी कहते हैं । राजाशाही अग्रवालों के विवाह दूसरे अग्रवालों से प्रायः नहीं होते । यद्यपि आजकल राजाशाहियों और दूसरे अग्रवालों में कोई कोई विवाह होने लगे हैं, पर सामान्यतया उनका प्रचार नहीं है । इस बिरादरी की स्थापना राजा रतनचन्द द्वारा हुई थी। राजा रतनचन्द जानसठ के निवासी थे । जानसठ संयुक्तप्रान्त के मुजफ्फरनगर जिले में एक कसबा हैं। मुगल बादशाहत के प्रसिद्ध बादशाह फर्रुखसियर के जमाने में रतनचन्द ने बड़ी उन्नति की । मुग़ल साम्राज्य के प्रसिद्ध सेनापति सैयद -बन्धु भी जानसठ के ही रहने वाले थे। सैयद बन्धुओं और रतनचन्द में बड़ी मित्रता थी ।
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