Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति की उत्पत्ति
२. बौद्ध साहित्य में पिप्पलिवन के मोरिय गरण का उल्लेख आता है । ये लोग बिहार प्रान्त के उत्तरीय प्रदेश में हिमालय की उपत्यका में बसते थे । मगध के बढ़ते हुवे साम्राज्य ने इन पर आक्रमण किया और इन्हें जीत कर अपने अधीन कर लिया। मौर्य वंश की उत्पत्ति इसी गण से हुई । मोरिय गण की एक राजकुमारी पाटलिपुत्र में रहती थी, उसी से चन्द्रगुप्त मौर्य पैदा हुवा था । मोरिय गण का वंशज होने से ही चन्द्रगुप्त भी 'मोरिय' या 'मौर्य' कहाता था । 2 इस प्राचीन मोरिय गण के वर्तमान प्रतिनिधि सम्भवतः उत्तरी भारत के मोरई व मुराव लोग हैं, जो मुख्यतया उत्तरी बिहार व उत्तर पूर्वी अवध में निवास करते हैं । मोरई लोग भी खेती - पेशा हैं, और चाणक्य की परिभाषा में 'वार्ताशस्त्रोपजीवि' कहे जा सकते हैं । मोरई लोग अपने तीत वैभव को सर्वथा नहीं भूल गये हैं । यद्यपि कृषि करने के कारण उन्हें सामान्यता शूद्र समझा जाता है, पर वे अपने को क्षत्रिय समझते हैं । कुछ दिन की बात है, लखनऊ के चीफकोर्ट में एक मुकदमे में मोई जाति के एक प्रतिवादी ने अपने को क्षत्रिय सिद्ध करने का प्रयत्न किया था । उसका यह भी कथन था, कि मोरई लोग प्राचीन मोरियों के वंशज हैं ।
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३. श्रेणी गण का जिक्र कौटलीय अर्थशास्त्र में आया है, और उसकी गणना वार्ताशस्त्रोपजीवि गणों में की गई है। उनका नाम
1. महापरि निब्बान सुत्त 6, 31
2. Mahavamso 5.14-171
3. कौटलीय अर्थशास्त्र
XI p. 378
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