Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २५२ हों, ऐसा विचार ही उस स्वामी भक्त क्षत्रिय वीर के लिए असह्य हो उठा । उसने यह झट निश्चय कर लिया कि वह उस अंतःपुर तथा उन अंतःपुर निवासियों ही को न रहने देगा। उसने तुरन्त प्राचीन हिन्दू गौरव नीति के अनुसार एक बड़ी चिता जला दी, और स्वामी के परिवार की तरह कुलबधुओं के सिरों को धड़ों से अलग कर चिता में डाल दिया । अनुकूल वायु पाकर चिता भभक उठी और सिंहद्वार तक का भवन अग्नि की लपट में भस्म हो गया ।'
उधर नवाब सिराजुद्दौला को कलकत्ता के आक्रमण में सफलता हुई। नवाबी सेना ने कलकत्ता को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया। अंग्रेज सब पकड़े गये । नवाब के दरबार में लाला अमीचन्द भी हाजिर किये गये । नवाब ने उनसे आदरपूर्ण व्यवहार किया। इसके अनन्तर वह घटना घटी, जो 'काल कोठरी' के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस कहानी को पहले पहल कहने वाले हौलवेल ने अमीचन्द पर ही यह दोष लगाया था, कि इन्हींने अंग्रेजों द्वारा अपने पर किये गये निर्दय व्यवहार का बदला लेने के लिये राजा मानिकचन्द से कह कर अंग्रेजों की यह दुर्गति कराई थी।
परन्तु इन भयंकर दुर्घटनाओं के बाद भी सेठ अमीचन्द और अंग्रेजों की मित्रता का अन्त नहीं हुवा । जब लार्ड क्लाइव ने सिराजुद्दौला के खिलाफ ९०० गोरे और १५०० देशी सिपाही लेकर आक्रमण की तैयारी की, तो लाला अमीचन्द ने एक पत्र में उन्हें लिखा--"मैं जैसा सदा से था, वैसा ही अंग्रेजों का भला चाहने वाला अब भी हूँ। आप लोग राजा बल्लभ, राजा मानिकचन्द, जगत सेठ आदि जिनसे भी पत्र
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