Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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मध्यकाल में अग्रवाल जाति
व्यवहार करना चाहें, उसकी व्यवस्था मैं करवा सकता हूँ।" सिराजुद्दौला के शासन से उसके बहुत से पदाधिकारी असंतुष्ट थे। उन्हें अंग्रेजों के पक्ष में करने लिये अमीचन्द ने बड़ा प्रयत्न किया । मानिकचन्द, राय दुर्लभ, महताबराय, स्वरूपचन्द, मीर जाफर आदि प्रधान सरदार गण इस षड्यन्त्र में शामिल हुवे, और उन्होंने लार्ड क्लाइव से मिलकर यह तय किया, कि सिराजुद्दौला को राजगद्दी से उतार कर मीरजाफर को नवाब बनाया जावे । मीरजाफर के नवाब बनने पर किसको कितना बंगाल के खजाने से दिया जाय, यह भी निश्चित कर लिया गया । मानिक राय, राय दुर्लभ श्रादि सरदार अमीचन्द से द्वष रखते थे। उनकी इच्छा थी, कि इस षड्यन्त्र से उसे कोई लाभ न होवे । इसी लिये लार्ड क्लाइव से मिलकर उन्होंने दो सन्धिपत्र तैयार कराये । एक लाल कागज पर और दूसरा सफेद कागज पर । असली सन्धिपत्र सफेद कागज पर था। इस में अमीचन्द को रुपया मिलने की बात नहीं लिखी गई । पर लाल कागज के नकली सन्धिपत्र में अमीचन्द को ३० लाख रुपया देने की बात लिखी गई । अमीचन्द को अंग्रेजों की सत्य प्रियता पर इतना विश्वास था, कि उन्हें जरा भी सन्देह नहीं हुवा।
अमीचन्द की मदद से अंग्रेज सिरोजुद्दौला को राजगद्दी से च्युत कर मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने में सफल हुवे। मीरजाफर के नवाब बनने पर जब लूट का माल षड़यन्त्रकारियों में बांटा गया, तब अमीचन्द को कुछ भी न मिला। उस समय उन्हें जाली सन्धि-पत्र की बात मालूम हुई। इससे उन्हें बड़ा धक्का लगा, उनका अन्तिम जीवन बड़े दुःख और निराशा में व्यतीत हुवा ।
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