Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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फुटकर टिप्पणियां नाम के सुगन्धित काष्ठ का व्यापार करते थे, इसीलिये वे अगरवाल या अग्रवाल कहाये । पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है, कि अग्रवालों में अगर का व्यापार कभी विशेष रूप से रहा है। इस समय तो उनका अगर के व्यापार से कोई भी खास सम्बन्ध नहीं है। ___एक अन्य मत यह है, कि प्राचीन समय में काश्मीर में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के बहुत से घर थे । यज्ञ के लिये अगर की आवश्यकता होती थी, और इस सुगन्धित काष्ठ को यज्ञार्थ देने का कार्य वैश्यों की एक विशेष जाति करती थी, जो इसी कारण अगरवाल कहाती थी। जब सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उसने काश्मीर के अग्निहोत्री ब्राह्मणों के यज्ञ कुण्ड नष्ट कर दिये, और अगरवाल वैश्य काश्मीर छोड कर आगरा के आसपास के प्रदेश में चले आये। इस मत में कई कठिनाइयां हैं । प्रथम अग्रवालों का काश्मीर से कभी कोई सम्बन्ध रहा हो, इस का कोई प्रमाण नहीं । यह ठीक है, कि राजा अग्रसेन का पूर्वज राजा धनपाल प्रतापनगर का राजा था, और कल्हण की राजतरङ्गिणी के अनुसार प्रतापनगर नाम का एक नगर काश्मीर में विद्यमान था । काश्मीर के प्रतापनगर के अतिरिक्त इस नाम के किसी अन्य नगर का उल्लेख प्राचीन संस्कृत साहित्य में नहीं मिलता। इसलिये यह विचार अवश्य संभव हो सकता है, कि शायद धनपाल का राज्य काश्मीर में ही हो । पर जिस अनुश्रुति के अनुसार धनपाल प्रतापनगर का राजा था, वही उसे दक्षिण की ओर के किसी प्रदेश का राजा बताती है। इसलिये धनपाल वाले प्रतापनगर को काश्मीर में कहीं मानना बहुत युक्तिसंगत नहीं जंचता। वह तो राजपूताना में ही होना
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