Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अप्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २६६
(५)
बंक और अल्ल अठारह गोत्रों के अतिरिक्त अग्रवालों में बहुत से बंक व अल्ल भी पाये जाते हैं, जो विविध परिवारों को सूचित करते हैं । केडिया, कानूनगो, कानोडिया, गोयनका आदि विशेषण न किसी पृथक् जाति का बोध कराते हैं, और न ही किसी पृथक् गोत्र का। ये विशेषण, जिन्हें बंक व अल्ल कहते हैं, विशेष परिवारों के सूचक हैं । ये बंक व अल्ल किसी प्रतापी पूर्वज व किसी स्थान विशेष के नाम से पड़े हैं। उदाहरण के तौर पर केडिया बंक को लीजिये । यह नाम केड़ नामक गांव से पड़ा, जिसके सम्बन्ध में निम्नलिखित कथा उल्लेखनीय है।
बारहवीं सदी में मुंडल जी नाम के एक प्रसिद्ध पुरुष हुवे। ये मंडल नामक स्थान पर जाकर बसे, जो भिवानी से तेरह मील की दूरी पर था। इनकी बारहवीं पीढ़ी में सेठ गोपीराम जी हुवे । उनके पाहुराम जी और भोलाराम जी नामक दो पुत्र हुवे । इन भाइयों की मंडल के शासक से कुछ अनबन होगई और इसी लिये इन्होंने मंडल को छोड़ दिया। उस समय भारत की राजनीतिक दशा बड़ी खराब थी । तैमूरलंग का आक्रमण अभी होकर ही चुका था। ऐसे विकट समय में जब ये दोनों भाई अपने पूर्वजों के घर को छोड़ कर किसी अज्ञात स्थान की ओर पश्चिम में चले जारहे थे, तो मार्ग में उस समय के प्रसिद्ध डाक जबरदीखां से इनकी भेंट हुई । जबरदीखां ने इनकी सम्पत्ति को लूटना चाहा । मगर इन भाइयों ने अपनी बुद्धिमत्तापूर्ण बातों से उस डाक् के मन पर बहुत अच्छा प्रभाव
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