Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास चाहिये । दूसरी बात यह है, कि सिकन्दर ने अपने भारतीय आक्रमण में काश्मीर पर हमला नहीं किया था। इसलिये जो मत सिकन्दर के काश्मीर में जाकर यज्ञ कुण्डों को ध्वंस करने की बात कहता है, उसको प्रामाणिकता में सन्देह होना स्वाभाविक ही है।
अग्रवाल शब्द पर विचार करते हुवे हमें यह ध्यान रखना चाहिये, कि अन्य भी बहुत सी जातियों के नाम के पीछे 'वाल' शब्द का प्रत्यय पाता है। उदाहरणार्थ, श्रोसवाल, खण्डेलवाल, वर्णवाल, पालीवाल आदि विविध जातियों के नाम हैं। ओसवालों में यह अनुश्रुति है, कि उनका प्रादुर्भाव मारवाड़ के अन्तर्गत प्रोसनगर के एक राजा से हुवा है । श्रोसवाल इसीलिये कहाते हैं, क्योंकि उनका श्रोसनगर या औसिता के साथ सम्बन्ध है । खण्डेलवालों की उत्पत्ति जयपुर राज्य के खण्डेलनगर से हुई है। वर्णवालों का नाम यह इसलिये पड़ा, क्योंकि उनका प्रादुर्भाव वर्ण नाम के राजा से हुवा, तो राजा समाधि के वंश में था। पालीवालों का जोधपुर के पल्लीनगर के साथ सम्बन्ध है। 'वाल' प्रत्यय हिन्दी का है, और इसका अर्थ 'का' है। यह प्रत्यय सम्बन्धवाचक है । अग्रवालों का यह नाम इसलिये पड़ा, क्योंकि वे 'अग्र' के हैं, उनका 'अग्र' के साथ सम्बन्ध है। अग्रवाल और आग्रेय-दोनों का बिलकुल एक ही अभिप्राय है । आग्रेय संस्कृत शब्द है, और अग्रवाल हिन्दी । दोनों का अर्थ बिलकुल एक ही है। जिस राजा अग्रसेन के नाम से
आग्रेय राज्य स्थापित हुवा, अगरोहा शहर का नाम पड़ा, उसी से उस राज्य के कुलीन लोग ( जिनका और राजा अग्रसेन का एक ही कुल व अभिजन था ) आग्रेय, अग्रवंशी या अग्रवाल कहाये।
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