Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवालों के गोत्र दो शाखाओं और वर्णवालों में एक समान गोत्रों की सत्ता का यही समाधान हो सकता है, कि ये समान गोत्र ( कुल व घराने ) उस समय से पहले विद्यमान थे, जब गुणधी ने अपना पृथक् वंश कायम किया। गुणधी का काल अग्रसेन से पहले है। अन्य गोत्रों का उद्भव गुणधी और अग्रसेन के काल के बीच में हुवा समझा जा सकता है ।
अग्रवालों के गोत्रों के सम्बन्ध में जो विचार सामान्यतया प्रचलित है, मैं उसे स्वीकार करने में संकोच करता हूं । राजा अग्रसेन के अठारह यज्ञों ( सतरह पूर्ण और एक अपूर्ण) में जिन ब्राह्मण ऋषियों ने पुरोहित कार्य किया, उनसे नये गोत्र कैसे चले, यह समझना कठिन है । फिर अग्रवालों के ये गोत्र किन्हीं ब्राह्मण ऋषियों में थे भी नहीं। महाभारत रामायण, पुराण, अष्टाध्यायी, प्रवरमञ्जरी, बौधायन श्रादि धर्म सूत्र, स्मृति ग्रन्थों आदि में प्राचीन ब्राह्मण ऋषियों के सैकड़ों हजारों वंश व गोत्रों के नाम मिलते हैं । उनमें अग्रवालों के गोत्रों ( कुछ को छोड़कर ) के नाम कहीं नहीं पाये जाते । अग्रसेन के पुत्रों के नाम से गोत्रों के चलने की बात भी सङ्गत नहीं होती है। प्रथम तो अग्रसेन के कितने पुत्र थे, इसमें भी बड़ा मतभेद है । अनेक स्थानों पर अग्रसेन के ५४ पुत्रों की बात लिखी गई है। फिर अग्रसेन के बड़े लड़के राजा विभु के नाम से कोई गोत्र नहीं चला, यह बात तो स्पष्ट ही है । हां, यदि आग्रेय गण के अठारह प्रधान कुलों को पालङ्कारिक रूप से राजा अग्रसेन के पुत्र कहा गया हो, तो दूसरी बात है।
मेरा विचार यह है, कि वैश्य भलन्दन, वात्सप्रि और मांकील-जो तीनों मन्त्रकृत् होने से वैश्यों के प्रवर कहे जाते हैं--के वंशजों में अनेक
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