Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास १९२ नवाधिकाश्च नवतिः सुतास्तस्य महीपतेः ॥३४ प्रजासु ते ह्यनाचारमकुर्वन् वै निजेच्छया तेनैव....इयं प्रजा चातीव दुःखिता ॥३५ यज्ञादयः प्रनष्टाश्च देशेऽशांतिः समा जनि याज्ञवल्क्यांतिक गत्वा प्रजावर्गेण भाषितम् ॥३६ सर्व वृत्तं समाकर्ण्य याज्ञवल्क्यो महामुनिः दयालुश्चैव धर्मात्मा सभां रंगस्य चागमत् ॥३७ ऋषि दृष्ट्वा नृपो रंगः मुनिन्तु समुवाच ह
स्वकीयागमनहेतुर्हि कथ्यता मुनिसत्तम ॥३८ गया है, तो राज्य रंग को देकर स्वयं हिमालय पर्वत को चला गया।३२-३३
अपने पिता के इस कार्य से उसके (रंग को छोड़ कर शेष) ९९ पुत्र बहुत अप्रसन्न हुवे । उन्होंने अपनी इच्छा पूर्वक प्रजा के ऊपर बहुत अत्याचार शुरू किये । इनके कारण प्रजा बहुत दुखी होगई । यश आदि सब नष्ट होगये और देश में अशान्ति मचगई। ३४-३६ ___ लोग मुनि याज्ञवल्क्य के पास गये, और सब बात कही। दयालु महामुनि महात्मा याज्ञवल्क्य सब वृत्तान्त सुन कर राजा रंग की सभा में आये । ३६-३७
राजा रंग ने जब ऋषि को देखा, तो उनसे निवेदन किया-हे मुनियों में श्रेष्ठ ! अपने पधारने का कारण कहिये । ३८
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