Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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उरु चरितम्
अग्रसेनस्य नार्यस्तु अष्टादश प्रकीर्तिताः प्रत्येकस्याः महिण्यास्तु तस्य वै पृथिवीपतेः ॥६३ त्रिपुत्राश्चैका दुहिता अभवन् हर्षदायकाः सुपात्रा चैव माद्री च शूरसेनस्य कथ्यते ॥६४ प्रथमायाः महिण्यास्तु प्राभवत् तनयत्रिकम् सप्तपुत्राः द्वितीयातः शूरसेनस्य भूपतेः ॥६५ प्रतापशालिनः सर्वे पितुरानन्ददायिनः दृष्ट्वा वंशस्य वृद्धिं हि ज्येष्ठो भ्राताग्रसेनकः ॥६६ स्वस्य चायं निवासार्थ गौडदेश प्रमन्यत तत्र देशे महापते राज्यमस्थापयत स्वयम् ॥६७
अग्रसेन की अठारह स्त्रियां थीं, यह कहा जाता है। उनमें से प्रत्येक के तीन तीन पुत्र और एक एक कन्या हुई, जो सब हर्षप्रदायक थीं। ६३-६४ ___ शूरसेन की दो स्त्रियां थीं—सुपात्रा और माद्री। पहली रानी के तीन पुत्र हुवे । दूसरी रानी के सात पुत्र हुवे। ये सब बड़े प्रतापशाली और पिता को आनन्द देने वाले थे । ६४-६६
जब बड़े भाई अग्रसेन ने देखा, कि उसके वंश की बहुत वृद्धि हो गई है, तो उसने अपने निवास के लिये गौड़ देश को निश्चय किया। उस अत्यन्त पवित्र देश में अग्रसेन ने अपना राज्य स्थापित किया । ६६-६७
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