Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
२०४
यशे पशुबधो जातस्ततो में हृदि घृणाभवत् । उचिंत नैव मन्येऽहम् अधुना पशुहिंसनम् ॥१०१ अहं स्वभ्रातॄन् पुत्रांश्च तथा कन्याः कुटुम्बिनः इदमेवोपदिशामि न कश्चिद्वधमाचरेत् ॥१०२ सार्धसप्तदशान् यागानग्रसेनो ह्यपूरयत् ॥१०३ भो विद्याधर, तेषां तु यागानामेव नामतः भ्रात्रोः द्वयोः सन्ततीनां गोत्राणि निश्चितानि वै ॥१०४ येन पुत्र दीक्षा तु गृहीता सवने यदा तस्य गोत्रं हि तन्नान्मा प्रसिद्धिमगमत् तदा ॥१०५ अग्रसेनस्य वंश्यानां गोत्राण्येतानि सन्ति वै गर्गो वै गोयलश्चैव गावालः कासिलादयः ॥१०६
(और उन्हें संबोधन करके कहा) यज्ञ में पशु हिंसा होती है, अतः मेरे हृदय में उससे घृणा हो गई है। अब मैं पशु हिंसा को उचित नहीं समझता हूँ। मैं अपने सब भाइयों, पुत्रों, कन्याओं तथा कुटुम्बियों को यही उपदेश करता हूँ, कि कोई भी हिंसा न करे । १०१-१०२
साढ़े सतरह यशों को अग्रसेन ने पूरा किया। १०३
हे विद्याधर ! इन्हीं यज्ञों के नाम से दोनों भाइयों की सन्तति के गोत्र निश्चित हुवे हैं । जिस पुत्र ने जिस यज्ञ में दीक्षा ग्रहण की, उसका गोत्र उसी के नाम से प्रसिद्ध हुवा । १०४-१०५
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