Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २१० बसने वाले ब्राह्मण सारस्वत, मिथिला के ब्राह्मण मैथिल, कन्नौज के ब्राह्मण कन्नौजिये और द्राविड़ देश के ब्राह्मण द्रविड़ कहाते हैं, वैसे ही गौड़देश के निवासी ब्राह्मण गौड़ कहाते हैं । अग्रवालों के पुरोहित गौड़ ब्राह्मण ही होते हैं । उरुचरितम् में जिस हरिहर ने अपने को राजा अग्रसेन के वंश का पुरोहित कहा है, उसे गौड़ ही लिखा गया है । बंगाल का नाम जो गौड़ पड़ा, उसमें एक हेतु यह भी बताया जाता है, कि इस गौड़ देश से कुछ ब्राह्मण वहां जाकर बसे थे और उन्हीं के कारण वह गौड़ कहाया जाने लगा था।
उरु चरितम् के अनुसार राजा अग्रसेन के भाई शूरसेन के नाम से ही मथुरा के समीपवर्ती प्रदेश का नाम शौरसेन पड़ा। इस बात में सत्यता का अंश कहां तक है, यह निश्चित कर सकना बड़ा कठिन है । पर यह ध्यान देने योग्य है, कि शूरसेनी नाम की एक जाति मथुरा के आसपास के प्रदेशों में रहती है। ये शूरसेनी लोग वैश्य समझे जाते हैं । कोई आश्चर्य नहीं, कि जिस प्रकार राजा अग्रसेन ने आग्रेय राज्य की स्थापना की, उसी तरह से शूरसेन ने अपने नाम से शौरसेन गण की स्थापना की हो, और आगे चलकर यह शौरसेन गण ही शूरसेनी वैश्यों के रूप में परिवर्तित हो गया हो । शौरसेन देश का उल्लेख महाभारत, पुराण आदि प्राचीन ग्रन्थों में सर्वत्र पाया जाता है।
इस सम्बन्ध में यह निर्देश कर देना भी अनुपयुक्त न होगा, कि पौराणिक अनुश्रुति में अन्धक वृष्णि संघ के मुख्य ( मुखिया = राजा) श्री कृष्ण के ज्ञातियों का वर्णन करते हुवे उग्रसेन और शूरसेन का जिक्र
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