Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २२४ यह वर्णन गुप्तवंश के एक राजा के सम्बन्ध में किया गया है । इससे तीन बातें स्पष्ट हैं—-गुप्तवंश के राजा वैश्य जाति के थे । उनका उद्भव मथुरा में हुवा था और उनका वैशाली के साथ सम्बन्ध था। मथुरा उस प्रदेश में है, जहां से वैश्य श्राग्रेयगण दूर नहीं है । स्वयं मथुरा का घनिष्ठ सम्बन्ध राजा अग्रसेन के भाई वैश्य शूरसेन के साथ जोड़ा गया है। उरुचरितम् के अनुसार तो शौरसेन देश जो मथुरा कहाने लगा, उसका कारण यह वैश्य शूरसेन ही था। वैशाली के प्राचीन राजवंश वैशालक वंश का उद्भव वैश्य भलन्दन तथा वात्सप्री से हुबा था, राजा विशाल की कन्याओं से राजा धनपाल के पुत्रों का विवाह हुवा था। इस प्रकार वैशाली के वंश का वैश्यों के साथ गहरा सम्बन्ध है, और गुप्तों का वैश्य होना सर्वथा संगत है।
गुप्तवंशी सम्राट वैश्य थे, यह जहां मंजुश्रीमूलकल्प से सूचित होता है, वहां इन राजाओं का अपने नामों के साथ 'गुप्त' लगाना भी इसी बात का द्योतक है। 'गुप्त' लगाने की परम्परा वैश्यों में ही है, और धर्मग्रन्थों ने भी इसका विधान किया है । पर श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने अपने ग्रन्थ A Political History of India में गुप्तों को जाट सिद्ध किया है। उनकी मुख्य युक्तियां निम्नलिखित हैं
(१) गुप्त सम्राटों का गोत्र धारण था । एक शिलालेख में गुप्त राजकुमारी प्रभाकरगुप्ता को धारण गोत्रीया' लिखा गया है । उसके पति का गोत्र 'विष्णुवृद्ध' था । प्रभाकर गुप्ता का अपना गोत्र धारण था । यह धारण गोत्र जाटों में है। क्योंकि उनकी एक उपजाति धेनु ( Dhenri ) हैं, जो अमृतसर जिले में पाई जाती है। ये धेन जाट
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