Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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मध्यकाल में अग्रवाल जाति
बाद इस गण के लोग एक पृथक् जाति के रूप में परिवर्तित हो गयेयह भी हम पहले प्रदर्शित कर चुके हैं । इस समय से इस गण या जाति का अपना कोई इतिहास नहीं है, पर इसके कुछ प्रमुख मनुष्यों ने अपनी प्रतिभा तथा प्रताप से जो उन्नति की, उसका कुछ कुछ परिचय अवश्य मिलता है । हम पिछले परिशिष्ट में यह सम्भावना प्रकट कर चुके हैं, कि गुप्तवंशी सम्राट वैश्य आग्रेय थे। अन्य भी अनेक राजाओं व सम्राटों का वैश्य होना हम प्रदर्शित कर चुके हैं। यह सर्वथा सम्भव है, कि आग्रेय गण के कुछ प्रतापी वैश्य कुमारों ने अपनी शक्ति और प्रतिभा द्वारा इन वैश्य वंशों का प्रारम्भ किया हो ।
भारतीय इतिहास में आठवीं सदी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण परिवर्तन की सदी है । इस काल में भारत की राजनीतिक शक्ति प्रधानतया उन जातियों के हाथ में चली गई, जिन्हें आजकल राजपूत कहा जाता है । भारत के पुराने राजवंशों व राजनीतिक शक्तियों का इस समय प्रायः लोप हो गया । पुराने मौर्य, शुंग, पञ्चाल, अन्धक, वृष्णि, क्षत्रिय, भोज आदि राज कुलों का नाम अब सर्वथा लुप्त हो गया, और उनके स्थान पर चौहान, राठौर, प्रमार, राष्ट्रकूट आदि नये राजकुलों की शक्ति प्रगट हुई । पुराने राजकुलों के साथ ही आग्रेय कुल की शक्ति तथा कीर्ति भी मन्द पड़ गई । यही कारण है, कि इस काल में आग्रेय व अग्रवालों के सम्बन्ध में कुछ भी परिचय प्राप्त नहीं होता।
दमवों सदी में भारत पर तुर्कों के आक्रमण शुरू हुवे । पश्चिम की तरफ के इन विविध मुसलमान आक्रान्ताओं-तुर्क, पठान और मुगलों
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