Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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उरु चरितम राजसभा जब जीर्ण होगई थी, राजकर्मचारी सब उदासीस हो रहे थे। कारण यही था, कि राजा ने 'प्रयाण' बिलकुल छोड़ दिया था ।
कुछ समय पीछे, जब महाराज उरु सभा में आये, तो शूरसेन ने अपनी यात्रा का सब समाचार सुनाकर उसके राज्य की दुर्दशा का कारण पूछा। उसने उत्तर दिया-इसका कारण सचिवों की उदासीनता ही है ! राज्य के मन्त्री सर्वथा अयोग्य हैं, उनके असामर्थ्य को देखकर मेरा हृदय बड़ा खिन्न होता है । राज्य के महल सब टूट गये हैं। हमारी भुजाओं में पहले जैसी शक्ति नहीं रही है। महाराज उस समय गहरा सांस लेकर चुप हो गये।
कुछ देर ठहर कर फिर राजा ने उससे कहा-राज्य में सर्वत्र अशान्ति मची हुई है । राज्य के दक्षिणी प्रदेशों पर शत्रुओं के आक्रमण हो रहे हैं । हमारे यहां कोई योग्य सचिव नहीं है । सब दुर्दशा का यही कारण है । मेरा अनुरोध यह है, कि आप कुछ दिन तक यहीं निवास करें, और सचिव का कार्य सम्भाल कर राजकार्य को देखें । तभी इस राज्य के उद्धार की आशा है।
शूरसेन ने महाराज उरु के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। धीरे धीरे उसने सारा राज्य प्रबन्ध सम्भाल लिया। राजमहलों की मरम्मत कराई गई, भिक्षुओं के लिये अन्न सत्र खुले, विद्यार्थियों के लिए विद्यापीठों की व्यवस्था हुई । नये न्यायाधीश और गुप्तचर नियत किये गये । सेना का नये सिरे से संगठन हुवा। कुछ ही दिनों बाद एक अच्छी शक्तिशाली सेना एकत्रित होगई । इस चतुरंगिणी सेना को लेकर शूरसेन ने दक्षिण की ओर आक्रमण किया और शत्रुओं को परास्त कर
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