Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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उरु चरितम्
मोहनदासेन नाम्ना म वै विष्णुपरायणा: दाक्षिणात्य प्रदेशे वै यशस्तेनोपपादितम् ॥२६ नेमिनाथो प्रपौत्रो वे ततस्तस्य बभूव ह । सुकीर्तिस्तेन प्राप्ता तु नयपालमवासयत् ॥३० नेमिपुत्रोऽभवद् वृन्दा वृन्दतो गुर्जरः स्मृतः गुर्जरस्य कुले शुद्धे हरिनामा ह्यभूननृपः ॥३१ तस्य रंगादयः पुत्राः शतं हि परिकीर्त्यते । हरिः शरीरतः क्षीणो ह्यल्पायुश्चापि प्रोच्यते ॥३२ वार्धक्यमात्मनो दृष्ट्वा राज्यं रंगाय चाददत् हिमालयं हि गतवान् पर्वत म हरिस्तदा ॥३३ जनकस्येदृशे काय ह्यप्रसन्नाः बभूविरे
कई सौ वर्ष बीत जाने के बाद मोहनदास नाम का एक राजा हुवा, जो विष्णु का बड़ा भक्त था। उसने दाक्षिणात्य देश में बड़ी कीर्ति प्राप्त की। २८-२९
उसका पड़पोता नेमिनाथ था। उसकी भी बड़ी कीर्ति फैली। उसने नयपाल बसाया।
नेमि का लड़का वृन्द हुवा । वृन्द से गुर्जर हुवा कहा जाता है। गुर्जर के शुद्ध कुल में हरि नाम का राजा हुवा । ३१ ।। ___ हरि के रंग आदि १०० पुत्र कहे जाते हैं। हरि शरीर से कमज़ोर था, उसकी आयु भी कम थी । जब उसने देखा कि अपना बुढ़ापा श्रा
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