Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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उरु चरितम्
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हिमालयं गतस्तत्र तपस्तप्त
निजेच्छया
सप्तभिः भ्रातृभिः पश्चात् अधिकारः कृतः स्वयम्
सप्तद्वीपेषु वै तावत् स्वामिनो ह्यभवन् तदा ॥१६ जम्बुद्वीपे च स्वामिवं शिवस्य प्रोच्यते
बुधैः
..
कुलं तस्यैव श्रेष्ठस्य विस्तारं प्राप्नुयात् सदा 1120 शिवस्य पुत्राश्चत्वारः आनन्दः प्रथमः स्मृतः ।
स्वेच्छयैव च शेत्रैस्तु योगस्य कृतम् ॥२१
॥१८
श्रानन्दादयो जात; ततो विश्यः समाभवत् । ततो वैश्य समाजज्ञे ( १ ) धर्मनीतिश्च शाश्वतम् ॥२२ प्रसुतोऽभूच्च वैश्यानां कुलं तावदशंसयम् ।
इनमें से नल उत्कृष्ट ज्ञान के कारण सन्यासी हो गया । वह हिमालय चला गया और वहां अपनी इच्छा से तप करने लगा । १८
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शेष सात भाइयों ने सातों द्वीपों पर स्वयं अधिकार कर लिया । वे सात द्वीपों के स्वामी हुवे । जम्बू द्वीप में शिव का स्वामित्व कहा जाता है । उसी श्रेष्ठ राजा का कुल वहां विस्तार को प्राप्त हुवा । १६-२०
शिव के चार पुत्र थे, उनमें आनन्द सब से बड़ा था। बाकी तीन ने अपनी इच्छा से योग मार्ग ग्रहण किया । २१
आनन्द का पुत्र अय हुवा, उससे विश्य पैदा हुवा । वह सदा धर्म की नीति का पालन करता था । बिना किसी सन्देह के, वैश्यों का कुल उससे बहुत विस्तृत हुवा । २२-२३
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