Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
आग्रेय पर आक्रमण कर सकता था। अगर वह ऐसा करता तो उसकी विजय-यात्रा का मार्ग महाभारत की कर्ण दिग्विजय के मार्ग से ठीक उलटा पड़ता । पर मालव के बाद उसने पहले शिवि पर आक्रमण किया, जो मालव की अपेक्षा दक्षिण में था और फिर पूरब में अगलस्सि का विजय किया। मेरी सम्मति में अगलस्सि और आग्रेय की एकता बहुत संभव है, और भौगोलिक दृष्टि से भी इसमें कोई बड़ी बाधा नहीं। __दूसरा विदेशी राजा, जिसका अगरोहा के साथ संबन्ध है, कुशान वंशी विम कैडफिसस है, जिसे पंजाब की दन्तकथाओं में रिसालू कहा गया है। उसकी राजधानी सियालकोट (प्राचीन शाकल ) थी। कैप्टेन आर. सी. टेम्पल ने सियालकोट के राजा रिसाल और अगरोहा की राजकुमारी शीलो की कथा अविकल रूप से संकलित की है । कैप्टेन टेम्पल की पुस्तक में यह कथा एक सौ चौबीस पृष्ठ में है। यह संभव नहीं है, कि इस सारी कथा को यहां उद्धृत किया जाय । पर इसका संक्षिप्त सार देना उपयोगी होगा।
शीलादेवी अगरोहा के हरबंशसहाय की लड़की थी, उसका विवाह सियालकोट के राजा रिसाल के दीवान महिता के साथ हुवा था। शीला बड़ी सदाचारिणी और धर्मप्राण स्त्री थी। दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के साथ हृदय से स्नेह करते थे। जब राजा रिसाल को मालूम हुवा कि उसके दीवान की पत्नी इतनी गुणवती है, तब वह उस पर मुग्ध हो गया । उसने चाहा कि वह स्वयं शीलादेवी के साथ विवाह कर ले । पर महिता के समीप रहते हुवे यह संभव नहीं था, कि वह अपनी इच्छा को पूर्ण कर सके । अतः राजा रिसाल ने किसी राजकीय कार्य पर
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