Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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टिप्पणी
महालक्ष्मीव्रतकथा या अग्रवैश्यवंशानुकीर्तनम् में जिस राजा की लक्ष्मीपूजा की कथा उल्लिखित है, उसका नाम 'अन' दिया गया है । अग्रसेन नाम उसमें नहीं है । इससे सूचित होता है, कि राजा अग्रसेन को केवल 'अग्र' भी कहते थे । सम्भवतः, उसका असली नाम अग्र ही था । अग्रसेन नाम बाद का है। यही कारण है, कि उसने जो अपना पृथक् वंश चलाया, वह अग्रवंश कहाया । उसके गणराज्य का नाम भी 'आग्रेय' पड़ा । इस संस्कृत ग्रन्थ में केवल 'अग्र' नाम होना महत्व की बात है । जो लोग यह युक्ति करते हैं, कि अग्रसेन द्वारा स्थापित गणराज्य का नाम 'अग्रसेनिय' होना चाहिये, आग्रेय नहीं, उनकी शंका का समाधान इस बात से हो जाता है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी केवल 'अन' का उल्लेख आता है । असली पुराना नाम 'अग्र' ही प्रतीत होता है।
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