Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अगरोहा पर विदेशी आक्रमण माहिता को सियालकोट से बहुत दूर रोहतासगढ़ भेज दिया। महिता को कोई भी सन्देह नहीं हुवा और वह अपनी शीलवती पत्नी शीला को अकेला छोड़कर दूर देश में चला गया। राजा रिसाल ने महिता की अनुपस्थिति से पूरा लाभ उठाया और शीला के घर में आने लगा। उसने हजार कोशिश की, कि शीला को धर्म भ्रष्ट कर अपने साथ विवाह करने के लिये राजी कर ले। पर उसकी एक न चली। शीला किसी भी तरह राजी न हुई । आखिर निराश होकर राजा रिसाल ने अपनी अंगूठी जिस पर उसका नाम खुदा हुवा था, शीला के शयनागार में छिपाकर रख दी । जब महिता रोहतासगढ़ से घर वापस आया तो एक दिन उसकी निगाह इस अंगूठी पर पड़ गई। महिता को सन्देह हो गया । शीला ने सब बात साफ साफ कह दी, पर महिता का सन्देह दूर नहीं हुवा । कई तरह से शीला की पवित्रता को परीक्षा ली गई । उसे दैवी परीक्षाओं में से भी गुजारा गया। सब में वह निष्पाप
और पवित्र सिद्ध हुई। पर महिता को इतने से भी संतोष न हुवा, उसका सन्देह बना ही रहा । जब यह बात शीला के पिता हरबंससहाय को मालूम हुई, तब वह अगरोहा से सियालकोट गया और अपनी कन्या को अपने साथ लिवा लाया। महिता को इस सारी घटना से बड़ा दुःख हुवा। शीला के प्रति उसके हृदय में सच्चा प्रेम था। वह उसके वियोग को न सह सका । वह वैरागी हो गया और इधर उधर भटकता हुवा वह आखिर अगरोहा गया और वहीं निराशा और दुःख में प्राण त्याग कर दिया। जब शीला ने यह सुना, तो वह भी अपने पति के शव के साथ सती हो गई। उधर राजा रिसाल को जब यह समाचार ज्ञात हुए,
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