Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास ८० क्षत्रिय गण के पीछे आता है और गणों के क्रम से सूचना मिलती है कि ये क्षत्रिय गण के समीप ही उनके प्रदेश से पूर्व की तरफ बसते थे । उनके वर्तमान प्रतिनिधि आजकल के 'सैनी' लोग प्रतीत होते हैं । सैनी लोग पूर्वी पंजाब व पश्चिमी संयुक्तप्रान्त में रहते हैं । उनका मुख्य पेशा खेती है । खत्रियों के समान वे भी वस्तुतः वार्ताशस्त्रोपजीवि हैं। वार्ता का एक अङ्ग व्यापार जिस प्रकार क्षत्रिय गण की विशेषता थी, वैसे ही दूसरा अङ्ग खेती श्रेणि गण की विशेषता थी। मगध के राजा बिम्बिसार को जैन ग्रन्थों में श्रेणिय' कहा गया है। शायद उसकी यह संज्ञा इस श्रेणिगण के साथ सम्बन्ध रखने के कारण ही थी।
४. प्राचीन भारत के महत्त्व पूर्ण गणराज्यों में आभीरगण अन्यतम था । इलाहाबाद में प्राप्त समुद्रगुप्त को प्रशस्ति में इस गण का उल्लेख मिलता है । ईसवी चौथी शताब्दि में यह गण बड़ा शक्तिशाली था। समुद्रगुप्त की प्रशस्ति के अतिरिक्त महाभारत' तथा अन्यत्र भी संस्कृत साहित्य मे : इस गण का जिक्र पाया जाता है। सम्भवतः,
आजकल के अहीर इसी आभीर गण के वंशज हैं । अहीर लोग दिल्ली, मथुरा तथा पंजाब के दक्षिण-पूर्वी प्रदेश में रहते हैं ।
५. अरायन पंजाब की एक जाति है जो मुख्यतया पंजाब के सिरसा तथा सतलुज व सम्मेत की घाटियों में रहती है। आजकल ये लोग प्रायः सब मुसलमान हो चुके हैं । पर इसमें सन्देह नहीं, कि ये भारत
1. Fleet, Inscriptions of the Early Gupta Kings, p. 14 2. महाभारत २, ३२, ११६२ 3. मनुस्मति १०, १५ 'तथा आभीर देशे किल चन्द्रकांत त्रिभिर्वरारीः विपिणन्ति गोपाः,
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