Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवालों के गोत्र
ही गोत्र है । यहां हमें श्रीयुत वैद्य महोदय की युक्तियों को दोहराने की आवश्यकता नहीं। पर जो बात राजपूतों के सम्बन्ध में सत्य हैं, वह अन्य ब्राह्मण-भिन्न वैश्य अग्रवाल आदि जातियों के सम्बन्ध में भी सत्य है । यहां यह निर्दिष्ट करना पर्याप्त हैं, कि अग्रवालों के अठारह गोत्रों में से अधिकांश ऐसे हैं, जो ब्राह्मणों में हैं ही नहीं । अग्रवालों के गौड़ पुरोहितों के जो गोत्र हैं, वे उनके यजमान अग्रवालों के नहीं हैं । बंसल, एरण आदि गोत्र ब्राह्मणों में नहीं पाये जाते । इस दशा में यह मानना कि अग्रवालों के गोत्र पुरोहितों से चले, कहां तक युक्तिसंगत हो सकता है ? सामान्यता, यह समझा जाता है, कि अग्रवालों के अठारह गोत्र उन ऋषियों के नाम से चले, जो राजा अग्रसेन के अठारह यज्ञों में पुरोहित बने थे । 'उरु चरितम्' में भी यही बात लिखी गई है । पर विचारणीय बात यह है, कि 'गोत्र प्रवर मञ्जरी' आदि गोत्र विषयक पुस्तकों में उन सब गोत्रों की सूचि दी गई हैं, जो अब ब्राह्मणों में प्रचलित है, या कभी पुराने समय में भी ब्राह्मणों व ऋषियों में प्रचलित थे । उनमें अग्रवालों के बहुत से गोत्रों का नाम भी नहीं है। राजपूतों के अधिकांश गोत्र भी उनमें नहीं मिलते हैं । इस दशा में यह कैसे माना जा सकता है, कि अग्रवालों के गोत्र उन ऋषियों के नामों से चले, जो अग्रसेन के अठारह यशों में पुरोहित थे । यदि उन ऋषियों के नाम गर्ग, गोइल, वात्सिल, कासिल, तिंगल आदि होते, तो उनका प्राचीन ब्राह्मण गोत्र सूचियों में नाम अवश्य होना चाहिये था। वर्तमान समय में परिवारों के वंश क्रमानुगत पुरोहित प्राचीन समय से उनके आवश्यक रूप से वे गोत्र नहीं हैं, जो उनके
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भी सब अग्रवाल
चले आ रहे हैं । यजमानों के है ।
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