Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवालों के गोत्र
में कुल आठ परिवार थे, जिनसे शेष सब का उद्भव हुवा । जब गोत्र का अभिप्राय सन्तति है, तो यही मानना होगा कि आठ ऋषियों की सन्तान ही सब आर्य लोग थे । आर्य जाति के सब लोग, चाहे वे किसी वर्ण के हो, चाहे उनमें कोई भेद, उपभेद आदि हो, इन्हीं अाठ ऋषियों की सन्तान हैं। महाभारत में एक श्लोक आता है, जो इस प्रकार है:
मूल गोत्राणि चत्वारि समुत्पन्नानि भारत
अंगिराः कश्यपश्चैव वशिष्ठेर भगुरेव च ।। इस श्लोक के अनुसार मृल गोत्र केवल चार हैं, अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु । उन्हीं से शेष सब कुलों व लोगों की उत्पत्ति हुई। बौधायन में जो पाठ मूलगोत्र दिये गये हैं, उनमें अंगिरा के स्थान पर उसके दो पोतों-भारद्वाज और गौतम के नाम हैं । भृगु के स्थान पर उसके वंशज जमदग्नि का नाम है । कश्यप और वशिष्ठ का नाम उनमें है ही । तीन नाम नये हैं, जिनका महाभारत के चार गोत्रों से कोई सीधा सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता । ये तीन नाम अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य के हैं।
आजकल भारत में गोत्रों की संख्या चार व आठ तक सीमित नहीं है। यदि आजकल के ब्राह्मणों के गोत्रों का ही संग्रह किया जाय, तो उनकी संख्या सैकड़ों में जावेगी । और यदि सब जातियों के लोगों के गोत्रों की सूचि बनाई जाय, तब तो वह हज़ारों में पहुँचेगी। इन सैकड़ों हजारों गोत्रों का सम्बन्ध मूल चार व आठ गोत्रों से ढूंढ सकना सम्भव
1. महाभारत, शान्ति पर्व अध्याय २६६
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