Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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वालों के गोत्र
कहावेगा । वह गोत्रापत्य न कहा कर युवापत्य कहावेगा, और इसी लिये उसे गार्ग्य के स्थान पर गार्ग्यायण कहेंगे । और यदि गर्ग के पोते गार्ग्य की कोई सन्तान भी हो, तो अपने पिता गार्ग्य के जीते हुवे वह गार्ग्यायण कहावेगी, गार्ग्य नहीं। एक समय में केवल एक ही व्यक्ति गोत्र व गोत्रापत्य कहावेगा - शेष सब युवापत्य होंगे ।
अपने उदाहरण को और स्पष्ट करने के लिये हम गर्ग के वंश में पन्द्रहवीं पीढ़ी के आदमी को लेते हैं । निस्सन्देह, 'अपत्यं पौत्र प्रभृति गोत्रम्' सूत्र के अनुसार वह गोत्र व गोत्रापत्य कहाना चाहिये । इसी अर्थ में उसकी संज्ञा गार्ग्य होनी चाहिये । पर यदि उसका पिता (पीढ़ी नम्बर १४ ) जीता है, तो वह पिता गोत्र ( गार्ग्य ) कहावेगा, लड़का ( पीढ़ी नं० १५ ) युवापत्य ( गार्ग्यायण ) कहावेगा । यदि पीढ़ी नं० १४ का कोई छोटा भाई हो ( उसे हम नं०१४ क कहते हैं, ) तो वह भी युवापत्य अर्थ में गाय ही कहावेगा ।"
पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में अनन्तरापत्य, गोत्रापत्य और युवापत्य अर्थ में भिन्न भिन्न शब्दों के विविध प्रत्यय लगाके जो विविध रूप बनते हैं, उन्हें बड़े विस्तार के साथ प्रदर्शित किया है । इस प्रकार के सैकड़ों शब्द अष्टाध्यायी और गणपाठ में दिये गये है । अष्टाध्यायी में सब से बड़ा प्रकरण तद्धित का हैं, और उसका मुख्य भाग इसी विषय पर है । पाणिनि ने गोत्रापत्य और युवापत्य में भेद दिखाने का
1. यञिञोश्च (अष्टाध्यायी ४-१-१०१ )
2. भ्रातरि च ज्यायसि ( अष्टाध्यायी ४, १, १६५ )
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