Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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है । विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरा में प्रतिपादित किया है, कि क्षत्रिय जातियों के अपने गोत्र व प्रवर नहीं हैं। उनके पुरोहितों के जो गोत्र व प्रवर हैं, वही क्षत्रियों के भी हैं । यही बात वैश्य जातियों के सम्बन्ध में भी मानी जाती है । गोत्र के ऊपर संस्कृत में बहुत सी पुस्तकें पाई
हैं । इन पुस्तकों में यह सिद्धान्त माना गया है, कि मूल गोत्र आठ हैं । अगस्त्य को मिलाकर ( जो सप्तर्षियों में नहीं है ) सप्तर्षियों ( इस प्रकार कुल आठ ऋषियों ) के जो पुत्र व सन्तान हैं, वही गोत्र कहाते हैं । इस प्रकार जो कुल आठ गोत्र हुवे, उनके नाम निम्नलिखित हैं
१. विश्वामित्र २. जमदग्नि ३. भारद्वाज ४. गौतम ५. श्रत्रि ६. वशिष्ठ ७. काश्यप ८ अगस्त्य ।
यह सिद्धान्त कि वस्तुतः अपने गोत्र ब्राह्मणों के ही होते हैं, और अन्य जातियां ( क्षत्रिय वैश्य आदि ) अपने पुरोहितों से ही गोत्र लेती हैं, धर्मसूत्रों में वर्णित है । पर प्रसिद्ध ऐतिहासिक श्रीयुत चिन्तामणि विनायक वैद्य ने बड़े विस्तार के साथ ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी समीक्षा की है। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ मध्यकालीन हिन्दू भारत के इतिहास में सिद्ध किया है, कि राजपूतों में बहुत से गोत्र ऐसे हैं, जो ब्राह्मणों में नहीं पाये जाते, जो ब्राह्मणों व पुरोहितों से न लेकर स्वयं राजपूतों के अपने
1. पुरोहित प्रवरोहि राज्ञाम्
2. सप्तानां सप्तर्षीणाम् श्रगस्त्याष्टमानां यदपत्यं तद्गोत्रम् इत्याचचते
( बौधायन )
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