Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास गई । उसने यज्ञ को बीच में ही बन्द कर दिया और यह अठाहरवां यज्ञ अपूर्ण ही रह गया । इसीलिये राजा अग्रसेन के साढ़े सतरह यशों का उल्लेख किया गया है। ___ अग्रसेन के यज्ञों का विस्तृत वर्णन हमारे दूसरे हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थ 'उरु-चरितम्' में बहुत अधिक विस्तार के साथ किया गया है । क्योंकि राजा अग्रसेन के इतिहास में इन यशों का बहुत महत्व है, अतः हम इस वर्णन को भी यहां उद्धृत करते हैं
राजा अग्रसेन का भाई शूरसेन था। जब ये दोनों भाई अपना राज्य स्थापित कर चुके और राजधानी भी बन गई, तब गर्ग मुनि के
आदेश से उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प किया। सब देशों में यज्ञ के निमन्त्रण भेजे गए । यज्ञ का वृतान्त सुन कर सब मुनि, देवता, विद्वान
और ऋषि अपनी अपनी सवारी पर चढ़ कर यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये आए । सब के ठहरने का प्रबन्ध शूरसेन ने बड़े आदर सत्कार के साथ किया । यज्ञ के अधिष्ठाता राजा अग्रसेन बने । ब्रह्मा का पद मुनि गर्ग ने ग्रहण किया। सतरह यज्ञ निर्विघ्न पूर्ण हो गए | जब महर्षि लोग अठारहवां यज्ञ करा रहे थे, तब राजा अग्रसेन के हृदय में हिंसा से अकस्मात् घृणा हो गई, उसने अपने मन में सोचा 'जिस हिंसा से नीच लोग नरक को प्राप्त करते हैं, मैं उसी में प्रवृत्त हो रहा हूँ। वैश्यों का परम धर्म तो पशु-पालन तथा उनकी सब प्रकार से रक्षा करना है, यज्ञ में पशु-वध होता है, अतः मैंने बड़ा पाप कर्म किया है।' यह विचार निरन्तर उसके हृदय में प्रबल होता गया। उस दिन का कार्य तो अग्रसेन ने जैसे तैसे करके समाप्त कर दिया। रात भर वह अपने
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