Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
१०५
राजा अग्रसेन का वंश
अब हम 'उरु चरितम्' के वर्णन की विवेचना प्रारम्भ करते हैं । ब्रह्मा, विवस्वान्, मनु, नेदिष्ट और नाभाग ये नाम प्राचीन पौराणिक अनुश्रुति के अनुकूल हैं । अनुभाग, नाभाग का ही रूपान्तर है । अनुभाग या नाभाग के बाद भलन्दन और वत्सप्रिय (वात्सप्रि ) के नाम भी पौराणिक वृतान्त के अनुकूल ही हैं । पर वत्सप्रिय के बाद ‘उरु चरितम्' में मांकील का नाम आता है। पौराणिक वंशावली में मांकील का नाम नहीं दिया गया । यह मांकील व सांकील प्राचीन वैदिक व संस्कृत साहित्य का बड़ा प्रसिद्ध व्यक्ति है। पुराणों में ही अन्यत्र उसका नाम भलन्दन और वात्सप्रिय के साथ एक ऋषि व मन्त्रकृत् के रूप में आया है । ब्रह्माण्ड और मत्स्य पुराणों में लिखा है, “भलन्दन, वत्स और सांकील ये तीन वैश्यों के प्रवर और मन्त्रकृत् समझने चाहिये ।"
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुराणों ने वंशावली से मांकील का नाम सर्वथा छोड़ दिया है, पर 'उरु चरितम्' ने उसे ठीक स्थान पर रक्खा है । सम्भवतः मांकील से एक नई शाखा का प्रारम्भ हुवा, जो मुख्य वैशालक शाखा से भिन्न थी । वात्सप्रिय के बाद मुख्य शाखा प्रांशु और उसके वंशजों की है, जिसका वर्णन मार्कण्डेय आदि पुराणों में मिलता है । पर सम्भवतः इसी वंश की एक अन्य भी शाखा थी, जिसमें वात्सप्रिय के बाद मांकील
1. भलन्दनश्च वत्सश्च सांकीलश्चैव ते त्रयः । एते मन्त्रकृतश्चैत्र वैश्यानां प्रवराः स्मृताः ॥
2. मत्स्य पुराण १४५ । ११६-७
( ब्रह्माण्ड पुराण २।३३।१२१-२ )
For Private and Personal Use Only