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राजा अग्रसेन का वंश
अब हम 'उरु चरितम्' के वर्णन की विवेचना प्रारम्भ करते हैं । ब्रह्मा, विवस्वान्, मनु, नेदिष्ट और नाभाग ये नाम प्राचीन पौराणिक अनुश्रुति के अनुकूल हैं । अनुभाग, नाभाग का ही रूपान्तर है । अनुभाग या नाभाग के बाद भलन्दन और वत्सप्रिय (वात्सप्रि ) के नाम भी पौराणिक वृतान्त के अनुकूल ही हैं । पर वत्सप्रिय के बाद ‘उरु चरितम्' में मांकील का नाम आता है। पौराणिक वंशावली में मांकील का नाम नहीं दिया गया । यह मांकील व सांकील प्राचीन वैदिक व संस्कृत साहित्य का बड़ा प्रसिद्ध व्यक्ति है। पुराणों में ही अन्यत्र उसका नाम भलन्दन और वात्सप्रिय के साथ एक ऋषि व मन्त्रकृत् के रूप में आया है । ब्रह्माण्ड और मत्स्य पुराणों में लिखा है, “भलन्दन, वत्स और सांकील ये तीन वैश्यों के प्रवर और मन्त्रकृत् समझने चाहिये ।"
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पुराणों ने वंशावली से मांकील का नाम सर्वथा छोड़ दिया है, पर 'उरु चरितम्' ने उसे ठीक स्थान पर रक्खा है । सम्भवतः मांकील से एक नई शाखा का प्रारम्भ हुवा, जो मुख्य वैशालक शाखा से भिन्न थी । वात्सप्रिय के बाद मुख्य शाखा प्रांशु और उसके वंशजों की है, जिसका वर्णन मार्कण्डेय आदि पुराणों में मिलता है । पर सम्भवतः इसी वंश की एक अन्य भी शाखा थी, जिसमें वात्सप्रिय के बाद मांकील
1. भलन्दनश्च वत्सश्च सांकीलश्चैव ते त्रयः । एते मन्त्रकृतश्चैत्र वैश्यानां प्रवराः स्मृताः ॥
2. मत्स्य पुराण १४५ । ११६-७
( ब्रह्माण्ड पुराण २।३३।१२१-२ )
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