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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास और फिर धनपाल हुवा । इस शाखा का वर्णन 'उरु चरितम्' ने किया है । इस शाखा की ऐतिहासिक सत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि मांकील एक इतिहास-प्रसिद्ध मनुष्य हुवा है।
पर यह भी सम्भव है, कि धनपाल वाली शाखा मांकील से पृथक न होकर बाद में पृथक् हुई हो। 'वर्ण-विवेक-चन्द्रिका' के अनुसार प्रांशु (भलन्दन का वंशज ) के छः पुत्र थे-मोद, प्रमोद, बाल, मोदन, प्रमोदन और शंखकर्ण । प्रमोदन के कोई सन्तान नहीं थी, अतः उसने शिव को प्रसन्न करने के लिये घोर तपश्चर्या की। महादेव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे यज्ञ करने का आदेश दिया । इस यज्ञ के अग्निकुण्ड से तीन पुत्र उत्पन्न हुए, जिनकी सन्तति अग्रवाल, खत्री और रोनियार कहाई । इस कथन में कहां तक सचाई है, यह कहना बहुत कठिन है । विशेषतः अग्रवाल, खत्री और रोनियार जाति का एक ही वंश से होना कुछ संगत नहीं प्रतीत होता। पर यदि इसमें सचाई का कुछ भी अंश है, तो यह स्पष्ट है कि अग्रसेन और धनपाल का वंश वात्सप्रि के बाद मुख्य वैशालक वंश से पृथक न होकर बाद में--प्रांशु और प्रमोदन के पीछे पृथक् हुवा । यह आश्चर्य की बात है कि 'वर्ण विवेक चन्द्रिका' ने अग्रवालों के अतिरिक्त दो अन्य व्यापारिक जातियों का सम्बन्ध पुराणों के वैशालक वंश के साथ जोड़ा है।
1. अग्निकुण्डात् समुद्भूताः त्रयः पुत्राः सुधार्मिकाः । अग्रवालेति खत्री च रौनियारेति संज्ञकाः ।।
(जाति भास्कर पृष्ठ २६९-७०)
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