Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का नागों के साथ सम्बन्ध
कुशानों की शक्ति का मुकाबला करने के लिये भारशिवों की यह नीति थी, कि वे भारत के विविध पुरातन राज्यों की स्वतन्त्रता का पुनरुद्धार करते थे और उनके साथ स्थिर मैत्री स्थापित करने के लिये अपनी राजकुमारियों का विवाह उनके साथ कर देते थे। इन राज्यों के लिये भारशिव व नाग सम्राटों की राजकुमारियों के साथ विवाह करना बड़े अभिमान की बात थी। इसी लिये अनेक शिलालेखों में 'फणीन्द्रसुता' व 'नागकन्या' के साथ विवाह करने की बात को बड़े गर्व के साथ लिखा गया है। कई बार मेरा विचार होता है, कि राजा अग्रसेन के नागकुमारी के साथ विवाह करने की जो बात अग्रवालों में इतने गर्व से स्मरण की जाती है, वह भी इसी काल के साथ सम्बन्ध रखती है । सम्भवतः अन्य बहुत से प्राचीन राज्यों के साथ आग्रेय गण की स्वतन्त्रता का भी इस समय पुनरुद्धार हुवा होगा। अगरोहा निश्चय ही कुशान साम्राज्य के श्राधीन था। विम कैडफिसस का तो अगरोहा से विशेष सम्बन्ध था। इस अवस्था में क्या आश्चर्य है, कि भारशिव नागों के साहाय्य से अगरीहा के अग्रेय गण ने भी पुनः स्वतन्त्रता प्राप्त की हो और उसके राजा के साथ भी नाग कन्या का विवाह हुवा हो। पर इस कल्पना में एक कठिनाई है। पिछले एक अध्याय में राजा अग्रसेन का समय हमने कलियुग के प्रारम्भिक भाग में सूचित किया है। यदि अग्रसेन का वह समय ठीक है, तो अग्रवाल-अनुश्रुति की नाग कन्या 'मंजुश्री भूलकल्प' के वैश्य नागों की कन्या नहीं हो सकती। सम्भवतः अग्रवालों को मातृपक्ष से सम्बन्ध रखने वाले नाग भारशिव नागों की अपेक्षा अधिक प्राचीन हैं। महाभारत की कथा में जिन लोगों ने
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