Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति की उत्पत्ति
की अपनी विशेषताओं को नष्ट कर उन्होंने सब पर एक कानून, एक नियम और पद्धति आरोपित करने का प्रयत्न किया। यही कारण है, कि अन्य देशों के गण राज्य जात-बिरादरी के रूप में विकसित न हो सके। भारत के सम्राट, जैसा हम ऊपर प्रदर्शित कर चुके हैं, सहिष्णु थे। वे न केवल विविध लोगों के नियम कानून को स्वीकार करते थे, अपितु उन्हें 'स्वधर्म' पर दृढ़ रखने में ही अपना कर्तव्य मानते थे । इसी कारण राजनीतिक सत्ता खो चुकने के बाद भी भारत के गण राज्य जीवित रहे और धीरे धीरे जात-बिरादरी के रूप में परिणत हो गये।
यह बात बड़े महत्व की है, कि अग्रवालों में अपनी पुरानी राजसत्ता के जीते जागते चिह्न अाज तक भी विद्यमान हैं । अग्रवालों में विवाह के अवसर पर निशान, नगाड़ा, छत्र, और चंवर का इस्तेमाल होता है। ये भारतीय परम्परा के अनुसार राजसत्ता के चिह्न माने गये हैं। अब तक इनका प्रयोग में आना अग्रवालों के पुराने आग्रेय राज्य का स्मारक है।
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