Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति की उत्पत्ति
आगे रसेल साहब ने इसी तरह के अन्य भी बहुत से उदाहरण
दिये हैं।
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कर्नल टाड ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ राजपूताना का इतिहास में चौरासी वैश्य जातियों की नामावली दी है, जिनके सम्बन्ध में उनका खयाल है कि उनका उद्भव राजपूतों से हुवा था । इस नामावली में अग्रवाल, ओसवाल, श्रीमाल और खण्डेलवाल नाम भी आते हैं।
ईलियट का भी यही खयाल है कि भारत की प्रायः सभी व्यापारी व वैश्य जातियों का उद्भव राजपूतों से हुवा |
राजपूत लोग कौन थे, उनका उद्भव कहां से और किस प्रकार हुवा, यह प्रश्न बड़ा जटिल हैं । इस पर विचार करने की यहां आवश्यकता नहीं । इसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – इस चातुर्वर्ण्य का क्या अभिप्राय है, यह प्रश्न भी बहुत टेढ़ा है । पर रसेल, टाड, इलियट आदि विद्वानों ने वैश्य जातियों में प्रचलित जिन किंवदन्तियों का उल्लेख कर उनका मूल राजपूतों से बताया है, उसका ऐतिहासिक दृष्टि से यही अभिप्राय है, कि किसी समय इन जातियों के भी अपने राज्य थे, उनके भी अपने राजा थे । यद्यपि आज इनका कोई राज्य नहीं, ये शस्त्र धारण नहीं करतीं, पर किसी दिन ये अपना शासन स्वयं करती थीं और व्यापार के साथ-साथ शस्त्रधारण भी करती थीं । उनका अपना राज्य होने से उन्हें मूलत: चाहे क्षत्रिय कहिये चाहे राजपूत । इतिहास में वास्तविक घटनाओं पर दृष्टि रखने वाले के लिये इससे कोई भेद नहीं आता । पर
1. Tod, Rajasthan, Vol. 1, pp. 76, 109.
2. Elliot, Supplementary Glossary. p. 110.
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