Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
भी वे इस जात्यभिमान को दृष्टि में रखते थे । रक्त की पवित्रता को वे बहुत महत्व देते थे।
(२) शक्तिशाली सम्राटों द्वारा विजय किये जाने के बाद भी इनकी पृथक् सत्ता कायम रही। __ ( ३ ) इन प्राचीन गणों का स्थान अब जातियों ( Castes ) ने ले लिया है । अनेक जात-बिरादरियों का सम्बन्ध हम पुराने गणों के साथ सुगमता से स्थापित कर सकते हैं । मैं तीनों बातों पर क्रमशः विचार करूंगा
(१) प्राचीन गण-राज्यों के नाम प्रायः बहुवचन रूप में आते हैं । यथा, शाक्याः, मल्लाः, मोरियाः, विदेहाः, पञ्चालाः, मालवाः,
आग्रेयाः, क्षुद्रकाः, आरट्टा: आदि । गण-राज्यों के ये नाम राज्य व देश को सूचित नहीं करते। ये जनता के, लोगों के सूचक हैं । हमें जन और जनपद में भेद करना चाहिये । जन लोगों को, निवासियों को सूचित करता है, जनपद देश को, भूमि को। इन गणों में जन मुख्य था, जमीन नहीं । जन से जनपद का नाम पड़ता था, जनपद से जन का नहीं । उदाहरण के तौर पर शाक्य जनपद की राजधानी कपिलवस्तु थी, पर इस जनपद का नाम शाक्य था, शाक्य लोगों की वजह से उसका यह नाम हुवा था । इसी तरह मल्ल, विदेह, पाञ्चाल आदि जो नाम हमें देशों के मिलते हैं, वे वस्तुतः जनता के नाम थे। उन उन नामों के जनों ( Tribes ) के कारण उन उन देशों का नाम पड़ा था। मतलब यह है, कि राज्य में जन मुख्य था, भूमि नहीं। साम्राज्यवाद के विकास से
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