Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
६८
I
पसेनदी जैसे शक्तिशाली राजा को कोरा जवाब दे दें । उन्हें भय था कि इन्कार करने से सावट्टी ( श्रावस्ती - कोशल देश की राजधानी ) का शक्तिशाली राजा कपिलवस्तु पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर देगा । उन्होंने एक चाल चली। शाक्यों के एक सरदार महानाम शाक्य की एक कन्या थी, जो दासी से उत्पन्न हुई थी । इसका नाम वासभखत्तिया था । देखने में वह परम सुन्दरी थी, और यह सन्देह होना कठिन था कि वह शुद्ध शाक्य वंश की कुमारी नहीं थी । शाक्यों ने वासभखत्तिया का विवाह कोशल राजा प्रसेनजित् के साथ कर दिया । '
महानाम शाक्य अपनी इस दासी पुत्री के साथ भोजन भी नहीं खा सकता था । प्रसेनजित् के राजदूतों को कुछ सन्देह हुवा, कि वासभखत्तिया कहीं दासी पुत्री तो नहीं है । उन्होंने परीक्षा के लिये यह चाहा कि महानाम उसके साथ भोजन करे । आत्माभिमानी शाक्य के लिये यह सम्भव नहीं था, कि वह ऐसा कर सके। पर यह न करने पर उसे भय था, कि प्रसेनजित् के राजदूत शाक्यों की चाल समझ जायेंगे। उसने एक दूसरी चाल चली । यह निश्चय किया गया, कि महानाम और वासभ खत्तिया एक थाली में भोजन करने के लिये साथ ग्रास वासभखत्तिया तोड़ेगी और खाना आरम्भ करेगी। इसके बाद महानाम ग्रास तोड़ेगा और ज्योंही खाने के लिये मुंह की ओर ले जाने लगेगा, खतरे का घंटा बजा दिया जावेगा । महानाम खाना-पीना छोड़कर एक दम उठ जावेगा और प्रसेनजित् के दूतों को कोई सन्देह न होने
खाने बैठेंगे। पहला
1. T.W. Rhys Davids, Buddhist India,pp. 10-11 sq.
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