Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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वंश (पांचवीं सदी ईस्वी पूर्व ) से गुप्त साम्राज्य ( पांचवीं सदी ईस्वी पश्चात् ) तक है । इस लम्बे संघर्ष से छोटे छोटे गणराज्य सर्वथा क्षीण हो गये, और अपनी राजनीतिक सत्ता सदा के लिये खो बैठे। महाराज हर्षवर्धन के बाद ये गणराज्य उत्तरी भारत से प्रायः लुप्त हो गये । या यूं कहना अधिक ठीक होगा, कि ये राज्य राजनीतिक सत्ता के स्थान पर सामाजिक सत्ता ही रह गये ।
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कुछ गणराज्यों को अपनी स्वाधीनता इतनी प्रिय थी, कि वे साम्राज्यवाद की अधीनता स्वीकार करने की अपेक्षा अपना देश छोड़ कर अन्यत्र बस जाने को अधिक पसन्द करते थे । इसीलिये उन्होंने अपने हरे भरे शस्य श्यामल प्रदेशों को छोड़ कर मरुभूमि का आश्रय लिया । वहां शक्तिशाली सम्राटों के हमलों से बचकर अपनी स्वाधीन सत्ता की रक्षा कर सकना सम्भव था । यौधेय और मालव आदि अनेक गण इसी तरह अपने पुराने निवासस्थान को छोड़ कर राजपूताना की घाटियों में जा बसे ।' निःसन्देह, वहां वे अपनी रक्षा करने में समर्थ हुवे ।
पर अधिकांश गण अपने पुराने स्थान पर ही रहे । सम्राट उनकी आन्तरिक स्वाधीनता को स्वीकार करते थे, उनके रीति रिवाजों तथा
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कानूनों को मानते थे । न केवल मानते ही थे, पर उन पर उन्हें दृढ़ रखने का प्रयत्न करते थे । इससे उन गणों में अपनी पृथक् अनुभूति
1. K.P.Jayaswal. Hindu Polity. Part I.P.124
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