Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास ७२ “संघ ( गणराज्य ) की प्राप्ति मित्र और बल की प्राप्ति की अपेक्षा अधिक महत्व की है । जो संघ आपस में मिले हुवे हों ( परस्पर संघात हों), उनके प्रति साम और दाम की नीति का प्रयोग किया जाय, क्योंकि वे शक्तिशाली होने से दुर्जेय होते हैं । जो परस्पर संघात न हों, उन्हें दण्ड और भेद के प्रयोग से जीत लिया जाय ।"
इस उद्धरण से स्पष्ट है, कि आचार्य चाणक्य की नीति यह थी, कि शक्तिशाली राज्यों को नष्ट करने के स्थान पर साम दाम के प्रयोग से वश में किया जाय। उन्हें मित्र बना कर अपने अधीन रखा जाय, उनकी सत्ता को स्वीकार कर उन्हें जीवित रहने दिया जाय । जो राज्य निर्बल हों, उन्हें सेना तथा फूट द्वारा जीत लिया जाय । जो बहुत से गण
राज्य मौर्य साम्राज्य की अधीनता में पृथक रूप से अधीनस्थ सत्ता रखते थे, उनमें से कुछ की सूचि भी अर्थ शास्त्र में पाई जाती है । वहां लिखा है
“लिच्छविक, वृजिक, मद्रक, कुकुर, कुरु, पञ्चाल आदि राजशब्दोपजीवि ( संघ ) हैं।"
“कम्भोज, सुराष्ट्र, क्षत्रिय, श्रेणि आदि वार्ताशस्त्रोपजीवि ( संघ ) हैं।"
मौर्यवंशी महाराज अशोक के सामाज्य में भी बहुत से गण राज्य अधीनस्थ रूप में विद्यमान थे। अशोक के शिलालेखों में इस तरह के
1. कौटलीय अर्थशास्त्र XI, p. 378 2. तथा
p. 378
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