Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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राजा सिकन्दर भी इसी तरह का था । जब इन प्रतापी राजाओं —— मगध के शैशुनाग, नन्द व मौर्य वंशी सम्राटों तथा विदेशी ग्रीक, कुशन व शक आक्रान्ताओं ने इन छोटे छोटे गण-राज्यों पर आक्रमण कर इनकी राजनीतिक स्वाधीनता को नष्ट करना शुरू किया, तब इनमें भारी परिवर्तन शुरू हुआ । देर तक ये राज्य आक्रान्ताओं का मुकाबला करते रहे । पर अन्त में विवश होकर हार गये । इनकी राजनीतिक स्वाधीनता नष्ट हो गई।
पर भारत के सम्राटों की एक विशेषता थी । बे सहनशील थे भारत के राजनीति - विशारद आचार्यों ने यह प्रतिपादित किया था, कि श्राधीन किये गये राज्यों के रीति रिवाजों, नियमों, कानूनों तथा प्रथाओं को सहन किया जाय। उन्हें नष्ट करने के स्थान पर साम्राज्य के कानून का एक अंग मान लिया जाय । ग्रीस व अन्य यूरोपियन देशों के सम्राटों ने इस नीति का अनुसरण नहीं किया । परिणाम यह हुवा, कि एक रोमन कानून सब के लिए जारी किया गया। पुराने नगर राज्यों (City states) के अपने कानून, रीति-रिवाज, व प्रथायें नष्ट हो गई । सब लोग एक रंग में रंग गये । इसके विपरीत भारत में हमारे सम्राटों की सहिष्णुता की नीति के कारण स्थानीय विशेषतायें नष्ट नहीं हो पाई । राजनीतिक सत्ता नष्ट हो जाने पर भी गण - राज्यों की सामाजिक स्वाधीनता व पृथक् सत्ता कायम रही । सदियों तक भारत के सम्राट इसी नीति का अनुसरण करते रहे । मेरी स्थापना यह है, कि इसी नीति के कारण बहुत से पुराने गण - राज्य आजकल की जातियों में परिवर्तित हो गये ! राजनीतिक सत्ता के नष्ट हो जाने पर भी इनमें अपनी पृथक सत्ता, पृथक्
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