Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास शब्द चला, इसीलिये 'अग्रवंशी' शब्द चला और इसीलिये 'अग्रवाल' शब्द प्रचलित हुआ।
मेरा विचार यह है, कि महाभारत में जिस आग्रेय गण का रोहितक व मालव गणों के बीच में उल्लेख है, वही आगे चल कर अग्रवंश या अग्रवाल जाति के रूप में परिणत हो गया। अन्य भी बहुत से गण राज्य आगे चलकर इसी तरह जातियों में परिवर्तित हुवे। इस विषय को जरा अधिक स्पष्ट रूप से वर्णन की आवश्यकता है।
प्राचीन भारत में आजकल की तरह के बड़े बड़े राज्य नहीं थे। न केवल भारत में, अपितु संसार के अन्य सभी देशों में उस समय छोटे छोटे राज्य होते थे। प्राचीन ग्रीस के ऐसे राज्यों के लिये नगरराज्य ( सिटी स्टेट ) शब्द प्रयोग में आता है। भारत के प्राचीन साहित्य में भारत के ऐसे छोटे छोटे राज्यों के लिये "गण" या संघ शब्द प्रयुक्त हुवा है। इनका विस्तार-क्षेत्र आज कल के जिले व तहसील के लगभग होता था । बीच में पुर या राजधानी होती थी और चारों ओर जनपद । पुर में सम्पन्न लोगों के घर होते थे, देवताओं के मन्दिर बने होते थे और विविध व्यवसायी अपना अपना कार्य करते थे। राज्य का संचालन यहीं से होता था। पुर के चारों तरफ प्रायः ऊंची दीवार रहती थी, जो गहरी पानी से भरी खाई से घिरी रहती थी। जनपद में कृषक रहते थे, जो खेती करके अपना निर्वाह करते थे। इन कृषकों के घर देहात में ही छोटे छोटे गांवों में होते थे । देव मन्दिरों में पूजा करने, पीठों व बाजारों में अपना माल खरीदने व बेचने तथा इसी तरह के अन्य कार्यों के लिये कृषक लोग जनपद से प्रायः पुर में आते
For Private and Personal Use Only