Book Title: Agarwal Jati Ka Prachin Itihas
Author(s): Satyaketu Vidyalankar
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Marwadi Agarwal Jatiya Kosh
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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास ६० (मध्य पंजाब ) के बीच में था। ठीक यही स्थान है, जहां आजकल अगरोहा के ध्वंसावशेष मिलते हैं । (२) अष्टाध्यायी में.. भारत का प्रसिद्ध प्राचीन वैयाकरण पाणिनि अपने ग्रन्थ अष्टाध्यायी में दो स्थानों पर अग्र और उसके विविध रूपों श्रानि, आग्रेय और प्राणायण का जिक्र करता है । यह जिक्र अष्टाध्यायी के गोत्रापत्य प्रकरण में आया है। गोत्रापत्य विषय पर विस्तार से विचार हम एक पृथक् अध्याय में करेंगे। पर यहां जिन दो सूत्रों का उल्लेख हम करते हैं, उनमें अग्र और उसके वंश में होने वाले आग्रेय लोगों का जिक्र स्पष्ट है
१-नडादिभ्यः फक् सूत्र में नडादि गण के अन्तर्गत अग्र शब्द भी है, जिससे विविध गोत्रापत्य अर्थों में आग्रेय, आग्रायण आदि शब्द बनते हैं।
२-शरद्वच्छनुक् दर्भात् भूगुवत्साग्रायणेषु ।'
इस सूत्र के अनुसार यदि किसी आग्रायण ( अग्र के वंश में उत्पन्न मनुष्य ) का नाम दर्भ हो, तो उसकी सन्तति गोत्रापत्य अर्थ में दार्भायण कहायेगी, पर यदि दर्भ नाम किसी ऐसे मनुष्य का हो, जो वंश से प्राग्रायण न हो, तो उनकी सन्तति गोत्रापत्य अर्थ में दार्भि: कहावेगी।
1. पाणिनि-अष्टाध्यायी ४-१-६६ 2. तथा ४-१-१०२ 3. अत इञ् , अष्टाध्यायी ४-१-६५
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