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स्थान-२/१/६०
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क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-संयोजनाधिकरणिकी और निर्वर्तनाधिकरणिकी ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी । प्राद्वेषिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-जीव-प्राद्वेषिकी और अजीव-प्राद्वेषिकी । पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- स्वहस्तपारितापनिकी और परहस्तपारितापनिकी ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- प्राणातिपातक्रिया और अप्रत्याख्यानक्रिया । प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-स्वहस्त प्राणातिपात क्रिया, परहस्त प्राणातिपात क्रिया । अप्रत्याख्यान क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- जीव अप्रत्याख्यान क्रिया, अजीव अप्रत्याख्यान क्रिया ।
क्रिया दो प्रकार की है, आरम्भिकी और पारिग्रहिकी । आरम्भिकी क्रिया दो प्रकार की है, यथा-जीव आरम्भिकी और अजीव आरम्भिकी । पारिग्रहिकी क्रिया भी दो प्रकार की है, यथा- जीव-पारिग्रहिकी और अजीव-पारिश्रहिकी ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- माया-प्रत्ययिकी और मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी । माया-प्रत्ययिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-आत्म-भाव-वंकनता और पर-भाववंकनता । मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- ऊनातिरिक्त मिथ्यादर्शन,प्रत्ययिकी तद्व्यतिरिक्त मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी ।
क्रिया दो प्रकार की है, दृष्टिजा और स्पृष्टिजा । दृष्टिजा क्रिया दो प्रकार की है, यथाजीव-दृष्टिजा औ अजीव-दृष्टिजा । इसी प्रकार पृष्टिजा भी जानना ।
दो क्रियाएं कही गई है, यथा-प्रातीत्यिकी और सामन्तोपनिपातिकी । प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-जीव-प्रातीत्यिकी और अजीव-प्रातीत्यिकी । इसी प्रकार सामन्तोपनिपातिकी भी जाननी चाहिए ।
दो क्रियाएं है, स्वहस्तिकी और नैसृष्टिकी । स्वहस्तिकी क्रिया दो प्रकार की है, जीवस्वहस्तिकी और अजीव-स्वहस्तिकी । नैसृष्टिकी क्रिया भी इसी प्रकार जानना ।
क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- आज्ञापनिकी और वैदारिणी । नैसृष्टिकी क्रिया की तरह इनके भी दो दो भेद जानने चाहिए ।
दो क्रियाएं कही गई हैं, यथा- अनाभोगप्रत्यया और अनवकांक्षप्रत्यया । अनाभोगप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-अनायुक्त आदानता और अनायुक्त प्रमार्जनता । अनवकांक्षप्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा- आत्म-शरीर-अनवकांक्षा प्रत्यया । पर-शरीर-अनवकांक्षा प्रत्यया ।
दो क्रियाएं कही गई है, यथा- राग-प्रत्यया और द्वेषप्रत्यया । राग-प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-माया-प्रत्यया और लोभ-प्रत्यया । द्वेष-प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है, यथा-क्रोध-प्रत्यया और मान-प्रत्यया ।
[६१] गर्हा-पाप की निन्दा दो प्रकार की कही गई है, यथा- कुछ प्राणी केवल मन से ही पाप की निन्दा करते है, कुछ केवल वचन से ही पाप की निन्दा करते हैं । अथवागर्दा के दो भेद कहे गये हैं, यथा-कोई प्राणी दीर्घ काल पर्यन्त 'आजन्म' गर्दा करता हैं, कोई प्राणी थोड़े काल पर्यन्त गर्दा करता है ।
[६२] प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया हैं, यथा-कोई कोई प्राणी केवल मन से