Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ शकुन: प्रस्तुत अध्ययन में जब जिनपालित और जिनरक्षित समुद्रयात्रा के लिए प्रस्थित होते हैं तब वे शकुन देखते हैं / शकुन का अर्थ 'सूचित करनेवाला' है। जो भविष्य में शुभाशुभ होनेवाला है उसका पूर्वाभास शकुन के द्वारा होता है। आधुनिक विज्ञान की हष्टि से भी प्रत्येक घटनाओं का कुछ न कुछ पूर्वाभास होता हैं / शकुन कोई अन्धविश्वास या रूढ परम्परा नहीं है / यह एक तथ्य है / अतीत काल में स्वप्नविद्या अत्यधिक विकसित थी। शकुनदर्शन की परम्परा प्रागैतिहासिक काल से चलती प्रां रही है। कथा-साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि जन्म, विवाह, बहिर्गमन, गृहप्रवेश और अन्यान्य मांगलिक प्रसंगों के अवसर पर शकून देखने का प्रचलन था / गृहस्थ तो शकुन देखते ही थे। श्रमण भी शकुन देखते थे। सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि गहस्थों की तो अनेक कामनाएँ होती हैं और उन कामनाओं की पूर्ति के लिए वह शकुन देखें यह उचित माना जा सकता है, पर श्रमण शकुन देखें, यह कहाँ तक उचित है ? उत्तर में निवेदन है कि श्रमण के शकुन देखने का केवल इतना ही उद्देश्य रहा है कि मुझे ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप की विशेष उपलब्धि होगी या नहीं? मैं जिस गृहस्थ को प्रतिबोध देने जा रहा है.--उस में मुझे सफलता मिलेगी या नहीं? शकुन को देखकर कार्य की सफलता का सहज परिज्ञान हो जाता है और अपशकुन को देखकर उसमें आनेवाली बाधाएं भी ज्ञात हो जाती हैं। इसलिए श्रमण के शकुन देखने का उल्लेख पाया है / वह स्वयं के लिए उसका उपयोग करे पर गृहस्थों को न बतावे / विशेष जिज्ञासु बृहत्कल्पभाष्य,* निशीथभाष्य**, अावश्यकचूणि*** प्रादि में श्रमणों के शकुव देखने के प्रसंग देख सकते हैं। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार एक वस्तु शुभ मानी जाती है और वही वस्तु दूसरी परिस्थितियों में अशुभ भी मानी जाती है। एतदर्थ शकुन विवेचन करनेवाले ग्रन्थों में मान्यता-भेद भी हम्गोचर होता है / जैन और जनेतर साहित्य में शकुन के संबंध में विस्तार से विवेचन है, पर हम यहाँ उतने विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही प्राचीन ग्रन्थों के पालोक में शुभ और अशुभ शकुन का वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं। बाहर जाते समय यदि निम्न शकुन होते हैं तो अशुभ माना जाता है(१) पथ में मिलनेवाला पथिक अत्यन्त गन्दे वस्त्र धारण किये हो। 176 (2) सामने मिलनेवाले व्यक्ति के सिर पर काष्ठ का भार हो। (3) मार्ग में मिलनेवाले व्यक्ति के शरीर पर तेल मला हा हो। (4) पथ में मिलनेवाला पथिक वामन या कूब्ज हो। (5) मार्ग में मिलनेवाली महिला वृद्धा कुमारी हो। शुभ शकुन इस प्रकार हैं(१) घोड़ों का हिनहिनाना (2) छत्र किये हुए मयूर का केकारव१७७ (3) बाईं ओर यदि काक पंख फड़फड़ाता हुअा शब्द करे। * (ख) बृहत्कल्प-१.१९२१-२४; 1.2810-31 ** (ग) निशीथभाष्य-१९.७०५४-५५; 19.6078-6095; *** (घ) आवश्यकचूर्णि-२ पृ. 218 176. प्रोधनियुक्ति 177. (क) पद्मचरित्र 54, 57, 69, 70, 72, 81, 73 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org