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द्रव्य-भाव भेद से भी व्रण के दो भेद हैं-शरीर के घाव द्रव्य व्रण हैं, तथा स्वीकृत व्रतों में दोष, अतिचार आदि भाव व्रण है। भाव व्रण की चिकित्सा आलोचना, निंदा, प्रतिक्रमण आदि से होती है। शास्त्र 4 में भावशल्य तीन प्रकार के बताये हैं-(१) माया शल्य, (२) निदान शल्य, और (३) मिथ्यादर्शन शल्य। म इन चौभंगियों को द्रव्य, भाव दोनों पक्षों में घटित कर समझना चाहिए। (संस्कृत वृत्ति भाग २ पृष्ठ ४५४)
Elaboration-Vran means wound. They are of two types-(1) bahya 5 vran (outer wound)--the wound made by a sharpe edged thing like knife,
needle, thorn, glass etc. (2) Antar vran-boil, tumour and other such inner infections that burst open.
There are two classes of wound from the angles of dravya (physical) and bhaava (mental). Wounds on the body are dravya-vran (physical wounds) and transgressions or faults in accepted vows are bhaava-vran (mental wounds). The cure of mental wounds is effected through selfcriticism, self-reproach and critical review. In scriptures there is a mention of three classes of bhaava-shalya (mental thorn)-(1) maaya shalya (thorn of deceit), (2) nidaan shalya (thorn of desires) and (3) mithyadarshan-shalya (thorn of unrighteousness). All these quads should be interpreted both ways, physical and mental. श्रेयस्-पापीयस्-पद SHREYAS-PAAPIYAS-PAD
(SEGMENT OF NOBLE AND IGNOBLE) ५२३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे णाममेगे पावंसे, के पावंसे णाममेगे सेयंसे, पावंसे णाममेगे पावंसे। ॐ ५२३. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष ज्ञान व सद्भाव की अपेक्षा श्रेयान्+ श्रेष्ठ/प्रशंसनीय होता है और आचरण की अपेक्षा भी श्रेष्ठ होता है; (२) कोई ज्ञान की अपेक्षा तो श्रेयान्
होता है, किन्तु आचरण की अपेक्षा पापीयान् (अत्यन्त निकृष्ट) होता है; (३) कोई मिथ्या-ज्ञान की ॐ अपेक्षा पापीयान् होता है, किन्तु आचार की अपेक्षा श्रेयान्; तथा (४) कोई मिथ्या-ज्ञान की अपेक्षा भी + पापीयान् और कदाचार की अपेक्षा भी पापीयान् होता है।
523. Purush (men) are of four kinds—(1) Some person is shreyan 45 (noble) in terms of right knowledge and good disposition and also in terms 4
of aachar (conduct). (2) Some person is shreyan (noble) in terms knowledge but paapiyan (ignoble) in terms of conduct. (3) Some person is
ignoble in terms of false knowledge and noble in terms of conduct. 9 (4) Some person is ignoble in terms of false knowledge as well as conduct.
५२४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, सेयंसे ॐ णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे सेयंसेत्तिसालिसए, पावंसे णाममेगे पावंसेत्तिसालिसए।
स्थानांगसूत्र (२)
(12)
Sthaananga Sutra (2)
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