________________
आदर्श-जीवन ।
.
-
~
कहकर पुकारते थे । उनके एक वृद्ध माता थी । उसका आधार वेही थे। उन्हें वृद्ध माताको त्याग करना पड़ता था । तीनोंके हृदयोंमें द्वंद्व मचा हुआ था; वैराग्य और बंधनमें युद्ध हो रहा था, मगर बाहर वे पक्का वैराग्य ही दिखाते थे। __ पाँचोंने मिलकर एक दिन घरसे निकलनाना निश्चित किया। तारीख और समय मुकर्रर हुए। हरिलालके वैराग्यने सबसे पहले हार खाई। उसने किप्सीके द्वारा पाँचोंके अभिभावकों को खबर दे दी। उनकी सलाह निष्फल गई । उनके संरक्षकोंने उन्हें कहीं जाने न दिया । कुछ समयके बाद श्रीचंद्रविजयजी महाराजका भी स्वर्गवास हो गया। इसलिए सबके वैराग्य शान्त हो गये। सभीने फिरसे विद्याध्ययनमें चित्त लगाया।
__ आपने भी छठी क्लाप्तका इम्तहान दिया और सफलता पाई। जब आप सातवीं क्लासमें पढ़ते थे परीक्षाका समय पास था, तब वि० सं० १९४२ था । उसी साल स्वर्गीय १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरिजी महाराका बड़ोदेमें आगमन हुआ। आपकी सोईहुई भावना फिर जागृत हुई और एक दिन जो घटना हुई उसका वणन हमने पुस्तकके आरंभहीमें दे दिया है।
एक महीने तक महाराज साहबका यहाँ बिराजना हुआ। फिर विहार करके छाणी पधारे । अनेक श्रावक छाणी तक गये ।
आप भी अपने बड़े भाई खीमचंद्रजीके साथ छाणी गये । आपकी ईच्छा वापिस बड़ोदे आनेकी न थी। मगर भाईके डरके मारे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org